अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
*मेरी शक्ति मेरी माँ*
जब माँ तुमने मेरी धड़कन को
महसूस किया था |
अपने तन की जमीन पर जीने को
आकाश दिया था |
आंखों के खुलते मेरे तुम मुस्काई
थी माँ |
चूमकर मेरा माथा स्तनपान कराई
थी मां |
मेरी खामोश ज़ुबाँ को माँ कहना
सिखाया था |
बेरंग पड़ी जिंदगी को इंद्रधनुष के
रंगों से सजाया था |
बेटी थी मैं............
हाँ......... बेटी थी मैं
मांँ तुमने मुझे पहचाना था |
संघर्ष तुम करती रही ,
भले ही खिलाफ जालिम जमाना
था |
अपने आंसुओं और सिसकियों
को तुमने भीतर दफनाया माँ |
खुद भूखी रहकर तुमने मुझे
निवाला खिलाया माँं।
नासमझ नादान लापरवाह सी मैं
तुम्हारी सोना |
तुमने ही तो इस पागल को सच्चा
इंसान बनाया माँ |
जब भी उदास हो रोती थी मैं
आंचल की छांव में तुमने सुलाया माँ |
तेरी लोरी मेरा पसंदीदा संगीत,
तेरे मुलायम हाथों की थपकी ने,
तेरे प्यारे से स्पर्श ने ,
मेरे दिल में प्रेम जगाया माँ |
वादा करती हूँ तुझसे मैं ,
तेरा नाम जहां मैं करूंगी माँ |
दुनिया से लड़कर पहचान बनाऊंगी,
तेरे चरणों में ध्यान धरूँगी माँ |
तू मेरी आहट को पहचानती है
धूप में छांव सी लगती है माँ |
तू ईश्वर की भी जन्मदाता है
धरा पर तुझसा कहाँ स्वरूप है माँ |
बड़ा सुकून मिलता है तेरी गोदी
की गर्माहट में माँ |
तन पर जब फेरती हो मिलती
हाथों की नर्माहट माँ |
मुझे आशीष देने को जब उठती
तेरी बाहें है माँ |
सफलता की ऊंचाइयाँ खुद मुझे
देती राहे हैं माँ |
*शिवानी त्रिपाठी।*
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