आज मीना सुबह से ही रो रही थी |क्योंकि उसकी मां का की असामयिक मृत्यु हो गई थी पूरे घर में लोगों का आना-जाना लगा हुआ था |खाने में कब कया बनाना, कैसे बनेगा, इसी विषय पर घर की महिलाओं में बहस छिड़ी हुई थी |चार बच्चों का करूण रुदन किसी को नहीं दिख रहा था | रिश्ते की मुँहबोली ताई भी आ गईं |बोली खाने में बघार नहीं लगेगा | पर स्वाद कहां से आएगा? थोड़ा सा अचार मंगा लो |मां सुहागन गई थीं, सो बिछूडी़ ,चूडियाँ पहले कौन लेगा |हिसाब -किताब में लगी हुई थीं |
वो चली गई, बहुत अच्छी थी |कभी पहले तो ना कहा था |बस हमेशा आलोचना ही की थी |बड़ी मौसी तो अपने बेटे की शादी की तैयारियों की बातों में ही मगन रहती थी |सच है, जिसका इंसान जाता है, उसे ही कमी खलती है, बाकी तो बस अफसोस के अफसाने ही होते है | अच्छे लोगों की ऊपर भी जरूरत होती है तभी किसी ने कहा |पहले दिन, दूसरा दिन खाना मामा के घर से बनकर आता है | बड़ी ताई कहने लगी | कहने को तो चार घर की दूरी पर रहती थीं पर मजाल है कि एक दिन भी खाने को पूछा हो | बुराई -भलाई करने को मायके वाले, काम धाम करने को भी मायके वाले याद आ रहे थे | मीना सब कुछ समझ कर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी | कुछ कहती तो बड़ी ताई कहतीं -छोरी की जबान बहुत चलती है देवरजी ससुराल में कया करेगी? छोटी बुआ भी आ गई कहने लगी -भाई की उम्र ही अभी कया है |मुश्किल से पचास का होगा |दूसरी शादी कर दो घर कौन संभालेगा? मां को मरे चार दिन भी न हुए, लोग कया-कया बातें कर रहे है? मीना का बाल -मन समझ न पाया | पर छोटी उम्र में ही बड़ी समझ आ गई थी, कि ये लोगों की मातमपुरसी नहीं ,दिल दुखाने का जरिया बन गया था | बडे़ लोगों के छोटे दिल एक- एक कर निकल कर बाहर आ रहे थे |वक्त बहुत बड़ा सबक सिखाने चला आ रहा था | उसने छोटे भाई -बहन तथा अपने पिता की देखभाल करने के लिए कमर कस ली थी |
द्वारा -आराधना विसावाडिया
इंदौर
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