महिला दिवस की सार्थकता-चन्द्रकांंता

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष


नारी तू नारायणी, 
   नारी तुम्हीं वेद। 
सुप्त ह्रदय में स्वामिनी, 
   भरती हो संवेद।।  


महिलाएं किसी भी घर परिवार,समाज और राष्ट्र की निर्माता होती हैं परन्तु इसके बावजूद क्या महिलाओं को घर, परिवार, समाज व देश में बराबरी का दर्जा मिल पाया है ? यह सवाल स्वयं में नारी अस्तित्व के लिए बड़ा प्रश्न है। समाज में महिलाओं पर अत्याचार भी सदा होता रहा है। ऐसी स्थिति में महिला दिवस भी औचित्य विहीन साबित होते रहा है महिला दिवस का महत्व। महिलाओं के अधिकार का हनन होना नहीं रुका,महिला उत्पीड़न में नहीं आई कमी,नारी शशक्तिकरण को नहीं मिला आयाम,नारी को नहीं मिलता समुचित सम्मान फिर क्या हासिल कर पाया "महिला दिवस" महिला दिवस की साथर्कता इसी में है कि एक भी बिंदु पर महिला को आजादी की स्वतंत्रता दी जाये। पुरुष वर्ग को अभिव्यक्ति तक ही महिला अधिकारों की बात न करके उसे स्वतंत्र स्वरूप,साकार करने की नियति का मनन करना होगा। महिला दिवस का सही मायनों में उपयुक्त भाव को भी उजागर करने में स्त्री को भी घर परिवार समाज व राष्ट्र में अपनी महती को समझते हुए सखी भाव भूमिका निर्वहन करनी होगी।
        महिला दिवस का औचित्य बहुत साफ है कि नारी उत्थान को सबलता प्रदान की जा सके जो धरातल पर दिखाई नहीं देता मगर दिवस के रास्ते कर्म पथ को याद तो अवश्य ही दिलाता है।


नारी की महिमा बड़ी, 
      जान रहे सब देश। 
नारी प्रतिभा बहुमुखी, 
      कहती है "चन्द्रेश"  


चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश" 
उपप्रधान (दिल्ली प्रांतीय रैगर पंचायत पंजी)
9560660941


05 अप्रैल 2020 को महिला उत्‍थान दिवस पर आयो‍जित
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