दर्द तुम्हारा रग रग में है, चीख तुम्हारी इस जग में है,
भूले भूल न पाएंगे,
फाँसी मिली दरिंदो को,
हम उसका जश्न मनाएंगे।
घुट घुट कर मरना क्या होता,
औरत का मतलब क्या होता,
और निर्भया और नही अब,
इज्जत न अब समझौता,
कामुकता के क्रूर कर्म को
मिलकर सबक सिखाएंगे।
फांसी मिली दरिंदो को, हम उसका जश्न मनाएंगे।
जब जी चाहे उठा ले गए,
कुचला रौंदा सज़ा दे गए,
हवस तुम्हारी रही घिनौनी,
बच्ची बूढ़ी मिली ले गए।
पूर्ण न होगी ये अभिलाषा,
प्राण न अब बच पाएंगे।
फाँसी मिली दरिंदो को, हम उसका जश्न मनाएंगे।
सोचो कितनी निर्दयता से, पाप किये थे निर्भयता से,
काँप उठी थी दानवता भी,
हिले न थे तुम जरा दया से।
ऐसे क्रूर अपराधी पर, रहम न हम कर पाएंगे।
फाँसी मिली दरिंदो को, हम उसका जश्न मनाएंगे।
आज मनाओ दिवाली सब,
मरा वासना का दानव दल,
चीखें इनकी सुनते हम भी
राहत मन को मिल जाती तब,
जननी का सम्मान नही,वो दुश्मन मार गिराएंगे।
फाँसी मिली दरिंदों को, हम उसका जश्न मनाएंगे।
दर्द तुम्हारा रग रग में है, चीख तुम्हारी इस जग में हैं,
भूले भूल न पाएंगे,
फाँसी मिली दरिंदो को, हम उसका जश्न मनाएंगे।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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