रोई थी उस दिन प्रकृति भी,
नारी की अस्मिता हुई तार तार।
किसी बेटी को निर्लज़्ज़ो ने,
बना दिया था हवस का शिकार।
आज सात साल बाद ही सही
मिला निर्भया को न्याय।
माँ की ममता को था,
पल पल इस दिन का इंतज़ार।
इतनी कामना प्रभु तुमसे,
अब न होने देना ऐसा अनाचार।
कोई व्यभिचारी अब न पैदा हो,
न लुटे नारी का सम्मान बार बार।
प्रीति डिमरी,देहरादून
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