फिर से मानवता का आगाज हुआ |
दर्द भरे दिन बेचैन सी काली रातों का,
सुकून भरे अरुण के साथ सुप्रभात हुआ |
दर-ब-दर भटकती रही,
भूख प्यास और तानों से तड़पती रही |
अपने ही देश में अपने ही घर में,
घर की बेटी निर्भया न्याय को तरसती रही।
नर पिशाची दरिंदों को हैवानियत
का अंजाम मिला,
देर से ही सही मगर निर्भया को खूंखारों
से निजात मिला |
मोक्ष गामिनी निर्भया को आज
न्याय मिला,
इधर-उधर जो भटक रहा था,
उस न्याय को भी आज मुकाम मिला |
नारी शक्ति की विजय हुई,
फिर से पापी राक्षस गए मारे |
दरिंदों की माँ भी सोच रही ,
मैंने कैसे अधर्मी हैं जाये |
पूर्ण रूप से नहीं परंतु तनिक
संतोष अवश्य मिला है,
जिसने फूल सी बच्ची को
तड़पाया,
आज उस पर भी चाकू चला है|
जैसे उसने जोड़े होंगे हाथ,
मगर पापियों नें रहम न दिखाया |
वैसे संविधान ने फांसी की सजा,
बेरहमी दरिंदों को सुनाया |
दुराचारियों कभी मुक्ति ना पाओगे,
हर पल तुम कोसे ही जाओगे |
नारी नारायणी पर अत्याचार किया है,
पापियों तुम मर कर भी तड़पाए जाओगे।
सात वर्ष इंतजार सहा है,
एक माँ ने संघर्ष किया है।
एक निर्भया को न्याय मिला,
मगर लाखों ने प्रतिकार सहा है|
जागने की बेला है देशवासियों,
एक मां ने इतिहास रचा है।
निर्भया को न्याय दिलाने,
धरती-आकाश भी एक किया है।
आज प्रकृति माता भी रोई,
आज भारत माता भी रोई |
आज निर्भया की माँ भी रोई,
देश की बेटी को इंसाफ मिला है।
शिवानी त्रिपाठी
मीरापुर,प्रयागराज
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