सुबह जागते हीं सोचा की आज काम से फ़ुर्सत होके डाक्टर के पास जाऊँगी ! बहुत दिनों से हाथ-पैर मे सुजन हो रही है. जिस कारण मन चिंता में रहता है.बच्चों को स्कूल भेज कर...पतिमहोदय को नाश्ता दिया और बोली की आज तुम दफ़्तर से जल्दी. अभी मेरी बात पुरी भी नहीं हुई की...
पति महोदय का.. तुम दिन भर घर में पडी- पडी
क्या करती रहती हो..? थोडा काम क्या कर दी..बीमारी का नाटक शुरू.. सुबह , शाम,रात-दिन.. मुँह लटकाये..घूमती रहती हो.जाओ तो वहीं चेहरा ,आओ तो वहीं..सोने जाओ तो वहीं...कहो तो सारा काम धंधा छोड के..तुम में हीं लगा रहूँ..!
कभी शांति से नहीं रहने देती हो.. क्या-क्या हो गया है तुमको..? तुम ऐसी तो नहीं थी...?किसकी हवा लग गई तुमको.? मैं अवाक आँखो में आँसू भरे उनकी ओर देखे जा..इन्हे क्या हो गया अचानक...उन्होंने हँसते हुए कहा...
अरे तुम कभी लडने का मौका हीं नहीं देती..तो क्या पडोसी की पत्नी से हद हैं ये भी...
इंदु पटना
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