प्रकृति की शक्ति-सिम्‍पल काव्‍यधारा

विशेष लेखन प्रतियोगिता


देखो कैसी कठिन घड़ी ,  बैठे सभी लाचार।
 देख मौत सामने खड़ी ,अन्दर भूख की मार।
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जीवन में सुख - दुख मिलता , बन जाओ धीर वान ।
फिर सुख का पल आएगा,  होगा तभी कल्याण।
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सृष्टि देख विकराल बनी , मानव के लिए काल ।
कलयुग बदले नवयुग में , जय- जय हो महाकाल।
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व्यर्थ की चिंता छोड़ कर , अब प्रकृति को पहचान।
हाथ जोड़ कर मांँगो सब , भोले से क्षमा दान।
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द्वेष ईर्ष्या छोड़ कर के ,भजते रहो श्रीकंत ।
सबको सन्मति देते हैं , गदाधारी हनुमंत।
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कमलनयन हरि जाप करो , सत्य ही हो आधार।
हिंसा पाप को त्याग कर , संस्कृति करो स्वीकार।


सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज


 



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