पुस्तक चर्चा-निज महिमा के ढ़ोल मंजीरे

पुस्तक चर्चा
निज महिमा के ढ़ोल मंजीरे
लेखक श्रवण कुमार उर्मलिया
प्रकाशक भारतीश्री प्रकाशन , दिल्ली ३२
मूल्य 400 रु , पृष्ठ 232, हार्ड बाउंड


इस सप्ताह मुझे इंजीनियर श्रवण कुमार उर्मलिया जी की बढ़िया व्यंग्य कृति निज महिमा के ढ़ोल मंजीरे पढ़ने का सुअवसर सुलभ हुआ . बहुत परिपक्व , अनुभव पूर्ण रचनायें इस संग्रह का हिस्सा हैं . व्यंग्य के कटाक्षो से लबरेज कथानको का सहज प्रवाहमान व्यंग्य शैली में वर्णन करना लेखक की विशेषता है .पाठक इन लेखो को पढ़ते हुये  घटना क्रम का साक्षी बनता चलता  है . अपनी रचना प्रक्रिया की विशद व्याख्या स्वयं व्यंग्यकार ने प्रारंभिक पृष्ठो में की है . वे अपने लेखन को आत्मा की व्यापकता का विस्तार बतलाते हैं . वे व्यंग्य के कटाक्ष से विसंगतियो को बदलना चाहते हैं और इसके लिये संभावित खतरे उठाने को तत्पर हैं . पुस्तक में ५२ व्यंग्य और २ व्यंग्य नाटक हैं . ५२ के ५२ व्यंग्य ,ताश के पत्ते हैं , कभी ट्रेल में , तो कभी कलर में , लेखों में कभी पपलू की मार है ,तो कभी जोकर की . अनुभव की पंजीरी से लेकर निज महिमा के ढ़ोल मंजीरे पीटने के लिये ईमानदारी की बेईमानी , भ्रृ्टाचार का शिष्टाचार व्यंग्यकार के शोध प्रबंध में सब जायज है . हर व्यंग्य पर अलग समीक्षात्मक आलेख लिखा जा सकता है , अतः बेहतर है कि पुस्तक चर्चा में मैं आपकी उत्सुकता जगा कर छोड़ दूं कि पुस्तक पठनीय , बारम्बार पठनीय है .



चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , ए १ , शिला कुंज , नयागांव ,जबलपुर ४८२००८


 




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