हसते रहो, हसाते रहो ''साहित्य सरोज 21 दिवसीय प्रतियोगिता''।
आप भी भेजे, मनोरंजक, हास्य कहानी कविता या अपनी हसाने
गुदगुदाने, लुभाने वाली तस्वीरें 9451647845
अलबेली हूँ ,अनोखी हूँ,अनसुलझी पहेली हूँ |
मैं सोना हूँ, परिस्थितियों से जूझी हूँ |
मिथ्या से अलग सफर करती हूँ,
अपनी वाणी से पहचान गढ़ती हूँ |
पहचान मेरी मेरे शब्दों में है ,
मन की गहराई सागर से गहरी है|
कुबेर की संपदा से अधिक,
भाव मेरे अंतर्मन में है|
हाथों में कलम धारण करती हूँ,
साहित्य की फुलवारी महकाती हूँ|
माँ की कोख से जन्म लेकर मीरा,
राधा कभी लक्ष्मीबाई बन जाती हूँ|
मैंने भीतर की शक्ति को पहचाना,
हृदय से यह मैंने है ठाना |
मेरी आवाज मेरी पहचान बने,
जिसे पहचाने ये सारा जमाना |
कहीं लुप्त न हो अस्तित्व मेरा,
हर दिन नया कुछ लिखते जाना है।
अभी तो बस चिंगारी लगी है,
पावक को दहकाना है।
मुझे रेत पर निशान नहीं बनाने,
जो एक लहर से मिट जाते हैं।
मैं पत्थर की लकीर बनूंगी ,
जो कभी न मिटाई जाती है |
संघर्ष की ललक जगाना है,
मुझे अपनी पहचान बनाना है |
भले ही विकारों से भरा जमाना है,
मुझे अपनी आवाज बुलंद करके
आवाम की आवाज जगाना है |
मुझे अपनी पहचान बनाना है ||
*शिवानी त्रिपाठी।*
*मीरापुर, प्रयागराज*
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