शुचिता-अमिता

मनोरंजक कहानी


शहर मे  144 धारा लागू थी।किन्तु घर में बडी हलचल थी। पडौसी चाचा कहाँ घर में रूकने वाले थे ।वे ताश खेलने चले आये थे।हंसी के फव्वारे के साथ ताश के गेम एक के बाद एक खेले जा रहे थे।विशेषता यह थी कि घर के छोटे बड़े सभी बारी बारी से अपनो किस्मत अजमा रहे थे।
         महौल खुशनूमा था।अम्मा ने रसोईघर से चाय बनाकर भेज दी थी।चाय पीते चाचाजी बोले बहू नेआज पनीर की सब्जी इतनी अच्छी बनाई थी जो कुछ ज्यादा ही खाई गई ।यह सुनकर दादाजी भला चुप रहने वाले थे।वे बोले हमारे यहाँ तो पुरा भोजन ही बहुत स्वादिष्ट बना था।बड़े प्रेम से परोसा गया था।मानो भोजन के कण कण मे शुध्द भावनाओ का रस भरा हुआ हो।
                  गेम खेल रही दोनो बहुऐं मुस्करा रही थी तो बच्चे तालियाँ बजाकर आलू के पराठे का  जायका बताने लगे थे।हल्ले गुल्ले के बीच कोरोना का डर कुछ हल्का होकर मन को शान्ति मिली थी। बीच-बीच में टी वी आन कर न्यूज देखने का क्रम जारी था।
                अब काम निपट कर अम्मा भी रसोईघर से बाहर निकल आई थी।उसने कहा सच में घर भी स्वच्छ, बर्तन भी साफ,खाना भी शुध्द मन से बना ,सबने समय पर भोजन बनाया  खाया और चौका भी चकाचक ।जब अन्दर बाहर मन की शुचिता नृत्य करने लगती है।तब दैवी गुणो का प्रभाव दिखाई देता है ।
         स्वच्छता है वहाँ भगवान विराजते है।फिर तन मन से किये कार्यो में शुचिता व पवित्रता  झलकेगी जरूर साथ में जब मन शान्त है तब तन भी तंदुरुस्त होता है।सभी माँ की बातों को ध्यान से सुन रहे थे।आज किसी ने ऐसा  नहीं कहा कि  अम्मा बस करो आपका भाषण। अम्मा मन से  सबको धन्यवाद दे रही थी।


अमिता मराठे 
इन्दौर 
मौलिक



 


 


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