तमन्ना अब तुम्हारी मैं करूं ये हो नहीं सकता,
तुम्हारी यादों के फिर बीज दिल में बो नहीं सकता।
तूने क्या सोचा खोके मैं तुम्हें यूँ टूट जाऊंगा,
मैं 'रघुवंशी' मैदान-ए-जंग में भी रो नहीं सकता।।
हम ठहरे गांव के वासी हमें एक ही घर है भाता,
टूटे झोपड़े से भी हमारा दिल का है नाता।
बदलना आशियाना है शहर वालों की फितरत में,
हम आशिक एक चुनते हैं बदलना फिर नहीं आता।।
तुम्हें प्यार के काबिल जो समझा थी खता मेरी,
मुबारक हो तुम्हें नौकर वो जिसमें हो रजा तेरी।
मुझे है गर्व कि मैं ख्वाब एक मालिक के रखता हूं,
आसानी से तुझे मिल जाऊं वो किस्मत कहां तेरी।।
तुम्हारे ख्वाब में बस नौकरों का आना जाना है,
सभी को लड़का नौकर चाहिए कैसा जमाना है।
जितनी प्रॉपर्टी में तू इतराती है सुन पगली,
उससे भी दस गुना महंगा सिर्फ़ तलवार खाना है।।
©️ राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी
0 टिप्पणियाँ