आज घर में बहुत खुशियां मनाई जा रही थी। चारों चहल पहल थी । दरवाजे पर डीजे बज रहा था। बजेगा क्यों नहीं आज पांच भाई और छे बहनो मे सबसे बड़े बेटे की शादी था । सब आनंदित हो रहे थे। सब भाई बहन अपने बड़े भैया की शादी में तन मन से अपना सारा काम कर रहे थे। कहीं गीत मंगल हो रहा था। कहीं भोजन बन रहा था। चारों तरफ से घर को सजाया गया था । सभी लोग अपने-अपने ढंग के कपड़े पहन रहे थे। आज महेश भैया का तिलक था । नियत समय पर तिलक चढ़ा ,बारात आई गई शादी विवाह सुंदर ढंग से संपन्न हुआ। लेकिन ना जाने सुहागरात के दिन पति-पत्नी में क्या हुआ कि उसी समय से महेश नाराज रहने लगा। उसका मन ही नहीं लग रहा था। मैं अब क्या करूं कहां जाऊं यही सोचता रहता। महेश एक बहुत ही अच्छा इंसान मृदुभाषी व्यवहार का सब से प्रेम करने वाला ,सबसे हंसकर बातें करने वाला। उसकी आदत सी बन गई थी। लेकिन आज वही व्यक्ति एकदम सुना सुना सा रहने आने लगा । उसके चेहरे से हंसी गायब हो चुकी थी।बहुत सारे लोग यह जानने की कोशिश की । कि आखिर ऐसी कौन सी बात हो गई । जो बहुरानी से हंसना बोलना बात करना ही छोड़ दिया।बहुत सारे रिश्तेदार समझाएं लेकिन किसी का बात नहीं माना धीरे-धीरे पत्नी के प्रति नफरत और बढ़ने लगी। यहां तक कि एक समय ऐसा आया कि वह पत्नी का चेहरदेखना भी पाप समझने लगा।
ऐसी कौन सी बात थी आज तक किसी को पता नहीं चला। वह नई नवेली दुल्हन एक पहेली बन कर रह गई।सरिता अपने पति के पास जाने की बहुत कोशिश करती जब जाती तो महेश मुंह फेर लेता था । उसको तनिक भी देखना पसंद नहीं करता था। सरिता मजबूर हो गयी। लेकिन क्या किया जाए पूरी बिरादरी और रिश्तेदारों को इकट्ठा किया गया पंचायत हुई फिर भी महेश अपनी पत्नी को अपनाने को तैयार नहीं हुआ । ऐसी कोई बात नहीं थी महेश के अंदर कि वह किसी और से प्रेम करता था।
आज वह बेचारी गौने की रात से ही विरह वेदना में तड़पती है । आज तक वह अपने पति का सुख नहीं पा सकी यह भी बात नहीं थी कि वह सुंदर नहीं थी। बहुत सुंदर थी । लेकिन क्या किया जाए भगवान को कुछ और ही मंजूर था।उसी घर में महेश की चाची रहती थी । जो सारा काम महेश का किया करती थी। खाना देना , पानी देना, कपड़ा साफ करना है । यानी कि जितना काम एक पत्नी का था। वह महेश की चाची कर रही थी । पत्नी का सब अधिकार महेश ने छीन लिया था।
आज शादी के लगभग चालीस वर्ष पूरे हो गए ।लेकिन कोई भी उनके आगे पीछे नहीं है । बेचारी मां बनने से भी वंचित रही । सरिता पूरी जिंदगी ससुराल में ही बीता दी बिना पति के सहारे पति सामने हैं । लेकिन न देख पाती ना बोल पाती। दूसरे के सेवा करते करते अपनी जिंदगी गुजार दी । क्या सरिता बिरहन से कम है जो पति के रहते एक बिरहन की जिंदगी जी रही थी। हर पल पति का प्यार पाने के लिए तड़पती रहती ।लेकिन कहां मुमकिन था। संतान सुख के लिए तो मां कुछ भी कर सकती है । लेकिन सरिता अपनी चरित्र को बचाए रखा। और अपनी जिंदगी बस जीती रही।आज सरिता का उम्र लगभग साठ वर्ष पूरे कर लिए लेकिन आज तक वही बात है जो चालिस वर्ष पहले था। बेचारी सरिता बिना पति बिना संतान की अपनी जिंदगी कैसे जिया यह तो सरिता ही बता सकती है । समय की मार सरिता कैसे सही यह तो भगवान ही जानता है।
सरिता दूसरे के बच्चों को प्यार दुलार दिया करती थी ।घर में सरिता को बहुत प्यारदेते थे । देगे क्यो नही सरिता एक नौकरानी बन कर रह गयी थी लेकिन एक पति का प्यार प्रेमसुख कुछ और ही होता है ।जो कभी नहीं पा सकी।एक तड़प के साथ सरिता अपनी जिंदगी से ऊब चुकी थी । केवल पेट भरने से प्यार नहीं मिल पाता । पति ही उसका सब कुछ है। एक सच्चा सुख पति के प्रेम से ही प्राप्त हो सकता है। लेकिन सरिता घुट घुट कर अपनी जिंदगी एक बिरहन की भाति जीती रही क्या किया जाए जो नसीब में होता है वही मिलता है । सरिता अपने नसीब पर रो रही थी कि मेरे से ऐसा कौन से पाप हो गया। उसकी बिरह मेआज तक जलती रही । कुछ समझ में नहीं आया कि मैंने कौन सा ऐसा काम किया जो पति के सुख से वंचित रही। आज भी यह बात पहेली बन कर ही रह गई । किसी को कुछ पता नहीं चला कि उस सुहागरात के दिन क्या हुआ था ।बस जिंदगी जी रही है भगवान के भरोसे । भगवान कब उनको याद करें । कुछ कहा नहीं जा सकता।
उपेंद्र अजनबी
सेवराई गाजीपुर
मो - 7985797683
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