आलिया-रेखा

आज  सुबह से आलिया अपने कामों में व्यस्त थी क्योंकि उसके काव्य संग्रह "उम्मीद की किरण" का आज विमोचन होना था  सुबह से उठकर पूरी  तैयारी करके वह मेहमानों का इंतजार करने लगी। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कनाडा, मालवा आदि सभी जगह के साहित्यकार एकत्रित हुए थे बहुत ही बढ़िया प्रोग्राम हुआ उसकी खुद की  गजलों का गायन हुआ जो सभी के द्वारा बहुत सराहा गया दूसरे दिन सुबह के लगभग सभी पेपर इस न्यूज़ से भरे थे अच्छी खासी पब्लिक सिटी के साथ आलिया का नाम छपा हुआ था कार्यक्रम की सफलता के कारण बधाइयों का तांता लगा हुआ था कभी व्हाट्सएप पर कभी फोन पर सभी उसके बेहतरीन लेखन और कार्यक्रम की बधाई दे रहे थे  वह सभी को धन्यवाद दे दे कर थक गई थी थकी थकी सोफे पर बैठी  वह  सोचने लगी आज तक उसे समझ नहीं आया कि यह उसकी मेहनत का प्रतिफल है या उसकी प्रतिभा का जिसने अपने आप को समझने में 40 साल लगा दिए! अभी तक तो वह सिर्फ अपनी जिम्मेदारी ही निवाहती रही थी अपने लिए वक्त निकाला ही नहीं तभी उन्हें उनकी पड़ोसन की आवाज सुनाई भाभी भाभी वह जल्दी से किचन की तरफ भागी क्यों कि उसके किचिन की खिड़की से पड़ोसन की बालकनी लगी हुई थी आलिया मुस्कराई और बोली कहिये भाभी क्या हुआ ?.
सविता ने बहुत खुश होकर उसे बधाई दी और बोली भाभी आपका नाम आज पूरे पेपरों नें है आपने देखा आलिया बोली हाँ है तो कल मेरी किताब का विमोचन था ना इसलिए तभी सविता बड़ी हताशा से बोली अब क्या कहें भाभी आप तो खूब नाम कमा रही हों एवार्ड भी मिल रहे है और एक हम है कोई नही पूंछता अब बताओ भाभी हम दिन-रात काम में लगे रहते है फिर भी हमारा ना पेपर में नाम आता है ना कोई एवॉर्ड देता है बस अपने हाथ पैर घिसते रहो आलिया निरुत्तर सविता का चेहरा देखे जा रही है सिर्फ अफसोस के दो अश्रु के साथ।



रेखा दुबे,


तिरूपति पैलेस, विदिशा 



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