आलू के चिप्स-सीमा

श्यामा के उत्साह व आनंद की तो आज कोई सीमा ही नहीं थी। पूरे तीन वर्षों बाद वह अपने मायके जो जा रही थी। पिछले तीन वर्षों से किसी न किसी कारणवश वह गर्मियों की छुट्टियों में अपने मायके नहीं जा पाई थी। शादी को अभी पाँच साल ही हुए थे पर ससुराल की बागडोर उसने ऐसे संभाली थी कि उसके बिना उसकी सास खुद को अपूर्ण अनुभव करती थी। अपनी इकलौती बहू को घर की चाभियाँ सौंपकर वह निश्चिंत हो चुकी थी। किंतु अपने छोटे भाई के विवाह में भी वह न जाए, ऐसा कोई नहीं चाहता था। बस फिर क्या था श्यामा ने फटाफट सारी तैयारियाँ कर ली और अपने पति राजेश के साथ घर से बाहर निकलने ही वाली थी कि उसके पड़ोस में रहने वाली रमा की छः वर्षीय बेटी ने उसका आँचल पकड़ लिया। श्यामा ने बड़े प्यार से बच्ची को दुलारते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ मेरी गुड़िया? बताओ निम्मी तुम्हें क्या चाहिए? मैं कानपुर सेे तुम्हारे लिए लेते आऊँगी।’’
निम्मी ने बड़े भोलेपन से कहा,‘‘ चाची आपको पता है न मुझे सबसे ज्यादा क्या पसंद है? हाँ ‘आलू के चिप्स’ मुझे बहुत पसंद है। आप अपनी मम्मी के पास जा रही हैं न तो ये भी लेते जाइए। क्या पता कब भूख लग जाए।’’
श्यामा ने निम्मी के हाथ से थैली ले ली और उसके माथे को चूमकर गाड़ी में बैठ गई। थोड़ी दूर जाते ही श्यामा को निम्मी का ध्यान आया और उसने थैली खोलकर देखा तो उसमें दो पैकेट ‘आलू के चिप्स’ थे। भावुकता से श्यामा की आँखें भर आई।


                                                                -सीमा रानी मिश्रा
      हरियाणा


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