जब हम छोटे थे," घर में माँ व बड़ी सिस्टर को"आलू का चिप्स" बनाते देखती थी तो बहुत अच्छा लगता था। हमारे शहर हाथरस में उन दिनों सभी लोग घर पर ही आलू का चिप्स बनाते थे देखते ही देखते मैंने भी आलू चिप्स बनाने सीख लिए,"एक बार घर मे पिताजी के व्यापारी काम के सिलसिले में आए हुए थे, हम उस समय आलू चिप्स बना रहे थे , उन्हें देखकर बहुत अच्छा लगा कि हम छोटे शहरों में इतना हुनर होते हुए भी पिछडा़पन क्यों है?जब साँयकाल हमने उन्हें चाय के साथ आलू के चिप्स जालीदार ,प्लेन, आलू के लच्छे,आलू के पापड़ खिलाए तो उन्होंने हमारे द्वारा बनाए आलू चिप्स की बहुत प्रशंसा की। वैसे तो उन दिनों व्यापारी जब भी टूर पर आते थे धर्मशाला में ठहरने का चलन था,होटल बहुत कम होते थे लेकिन फिर भी घर पर भी उनको आमंत्रित करते थे, जाते हुए पिताजी ने उनको बहुत सारे आलू चिप्स दिए और उन्हें घर के आलू चिप्स स्वच्छता से बनाए जाने पर और बहुत साॅफ्ट होने की वजह से पसंद आए थे।
चलते हुए उन्होंने हमारी माँ से बनाने का तरीका पूछा और एक आलू का चिप्स बनाने की मशीन भी पिताजी ने उनको लाकर दी।
अब जब भी उन व्यापारी का हमारे यहाँ आना होता तो आलू का चिप्स खाने की फ़रमाइश ज़रूर करते थे और चलते हुए बहुत सारे चिप्स हमेशा ही पैक करके हम उनको भेंट करते थे।
रीता जयहिन्द
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