आलू के चिप्‍स- रेखा दूबे

 ममता ने धड़कते ह्रदय से स्टोर रूम का दरवाजा खोला और पुराने डिब्बों के बीच में से पीले रंग  के डिब्बे को उठाते हुए उसकी आंखें भर आई ढक्कन खोल कर जैसे ही उसने डिब्बे के अंदर हाथ डाला आलू  के चिप्स की खुरखुरी आवाज से वह छटपटा उठी  अपने आंसुओं के वेग को रोकने की भरसक कोशिश करते हुए उसने मुठ्ठी भर चिप्स निकाल कर थाली में रखे और सोचने लगी काश जिंदा रहते उसने कभी सासू माँ के प्यार को समझा होता और उनकी इज्जत की होती तो आज इस तरह पछतावे के सागर में उमड़-घुमड़ नहीं रही होती पूरे विश्व में आने वाली इस महामारी के दौरान होने वाले lockdown ने छोटी छोटी चीजों को भी तरसा कर रख दिया है घर का राशन पानी और नास्ते का सामान भी कब तक चले बस दाल-रोटी कब तक खाओ?। पिज्जा-बर्गर बंद बच्चों को रोज कुछ नया चाहिए क्या नया बना कर दे कुछ समझ ही नहीं आता ?..आज मां के वही चिप्स जो उन्होंने गांव से रमेश के साथ भेजे थे ओर उसने रमेश से लेकर बड़ी ही उपेक्षा के साथ यह कहते हुए स्टोर रूम में पटक दिए  थे बस देने के लिए तुम्हारी माँ के पास यही रह गए थे?
उसके एक महीने वाद ही माँ ने इस दुनियां को अलविदा कह दिया था पर आज मां के आशीर्वाद स्वरूप मिले वही चिप्स बच्चों को "अंकल चिप्स" और कुरकुरे जैसे लग रहे हैं ।
उसने अपनी भरी हुई आंखें आसमान की तरफ उठाकर सोचा मां जहां भी होगी उन्हें देखकर खुशी से  मुस्कुरा रही होंगी।

रेखा दुबे
तिरूपति पेैलसे, भोपाल रोड
विदिशा मध्‍यप्रदेश


 



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