आनलाइन कवयित्री सम्मेलन में -संतोष शान

आनलाइन कवि सम्मेलन 
एक शाम तुम्हारे नाम
आयोजक -साहित्य सरोज


ना मैं  स्वर्ग की अप्सरा
ना स्वप्न लोक की कोई परी
समस्त सृष्टि में , पृथ्वी की
सबसे सुंदर रचना हूं
हर रुप में 
करते जिसकी .. वन्दना हूं
मैं !  मां हूं
जननी हूं जगत में मानव की
जीती हूं रिश्तों की खातिर 
हर जुड़ते रिश्ते मुझमें हैं
और मैं हूं रिश्तों की खातिर
जननी हो कर खुद ना जानी
रिश्तों के बीच  "मैं " क्या हूं  ?
भोग्या ! या  सुलक्षणा हूं !?
मैं      मैं मां हूं
अजन्मी सही ... पर  सोचा नहीं
आकर फिर संसार में
बाद बेटी के ...
किसी के घर का सपना हूं
सजता  हुआ अंगना हूं
मैं  मां हूं 
चाह वंश की ‌मेरी कोख से
मैं ही इनकी परम्परा
वजूद भी देता अंश मेरा
फिर भी कहाई अबला हूं !?
कितनी हृदय वत्सला हूं !!
मैं  मैं  मां हूं
मुझसे जन्में ही
करते मेरा कत्ल ..
मेरी हत्या 
मसली .. कुचली  , मरी हूं
उसी जन्में के हाथ
क्योंकि........
वो समझते  मांस का
सिर्फ एक  लोथड़ा हूं...
नहीं ! नहीं !!
मां हूं मैं 
मां हूं ...
मैं   मैं   मां हूं ।


संतोष शर्मा शान मथुरा


 


 


 


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