आनलाइन कवयित्री सम्मेलन में रेखा दुबे विदिशा।

आनलाइन कवि सम्मेलन 
एक शाम तुम्हारे नाम
आयोजक -साहित्य सरोज


गम जुनून आघात को सौगात 
बताकर चल दिए।
जख्म देकर प्यार में क्यूँ हम को 
सताकर चल दिए।।


बेजुवान हो हसरतें शरारतों को 
रोकती है।
आलिंगन की सरगोशियां आप 
चुरा कर चल दिए।।


जख्म देकर प्यार में क्यूँ हम को 
सताकर चल दिए।।


निष्ठुर लव रोकें मगर शोक से 
संतप्त है जड़।।
मिरे महबूब मोहब्बत कि महफिल सजाकर चल दिए।।


जख्म देकर प्यार में क्यूँ हम को 
सताकर चल दिए।।


मौन आंखें बोलती है अब अश्रु 
लेकर  डोलती हैं।
बेरुखी से इस तरह साजन
रुलाकर चल दिए।।


जख्म देकर प्यार में क्यूँ हम को 
सताकर चल दिए।।


शाम रोज चूमती ये मीत मन का 
ढूंढती है।
महके हुए गुलिस्ता कि तुम शमां 
बुझाकर चल दिए।।


जख्म देकर प्यार में क्यूँ हम को 
सताकर चल दिए।।


बाग कोयल कुहुकती जब
सांस मेरी टूटती है।
दफन करके सांस मेरी तुम 
मुस्कुराकर चल दिए।।


जख्म देकर प्यार में क्यूँ हम को 
सताकर चल दिए।।


रेखा दुबे, विदिशा


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