आनलाइन कवि सम्मेलन
एक शाम तुम्हारे नाम
आयोजक -साहित्य सरोज
आज फिर हमने कुछ सपने सजायें हैं ....
आज फिर मेरे हौंसले उड़ान भरके आये हैं ...
ऐ बेटी तुम जो भी हो मेरे दिल में बस जाना ...
मुझको ही तुम समझना मैया इस तरहा मुझमें रम जाना ...
ऐ बेटी तुम जब भी आना मेरे घर खुशियाँ लाना ...
नहीं चाहिये आडम्बर कोई नहीं दहेज का लोभ है ...
ऐ बेटी तुम जब भी आना सुख समृद्धि मेरे घर लाना...
नहीं हो ईर्ष्या द्वेष भाव नहीं हो वाणी में कटुता ....
सरल रहो तुम सहज रहो तुम शिष्टाचार में रहे सरलता ....
ऐ बेटी तुम जब भी आना संस्कार से भरकर आना ...
खुशियों ले बीते जीवन ऐसा हो हम सबका संगम ....
मिले सफलता जीवन में ये दहेज ही क्या है कम ...
ऐ बेटी तुम जब भी आना निर्मल मन निश्छल प्रेम ले आना ...
वीणा जैसी मधुर मधुर आँगन में संगीत सजाना ....
यश कीर्ति बढ़े सदा आँगन ऐसे रौशन कर देना
ऐ बेटी तुम जब भी आना संग दहेज यही सब लाना ...
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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