आनलाइन कवि सम्मेलन
एक शाम तुम्हारे नाम
आयोजक -साहित्य सरोज
माई माई माई री
तू याद बहुत आई री!
ढूढ रही तुझको निशदिन
जाने कहाँ समाई री!
हँसी मगर मन में रोई
असुअन से यह तन धोई
थकी मगर तू न सोई
अपनों में सुध-बुध खोई
इस बगिया का फूल खिला
आप ही कुंभलाई री!
माई माई माई री
तू याद बहुत आई री!
आँचल का कोर दबाये
अरमानों की लड़ी छुपाये
मन की बात कह न पाये
दूर अपनों से रह न पाये
सबकी पीड़ा को हर कर
दुःख क्योंकर छुपाई री!
माई माई माई री
तू याद बहुत आई री!
खम्भे सी खड़ी रही थी
ढाल बनी अड़ी रही थी
खुशियाँ तू लुटा रही थी
खुद को ही मिटा रही थी
इस जीवन के सागर की
लहरों से टकराई री!
माई माई माई री
तू याद बहुत आई री!
ठंड में तू रजाई सी
भूख में तू मिठाई सी
रोग में तू दवाई सी
उघड़न में तुरपाई सी
चली गई तू छोड़ हमें
सिमट गई परछाई री!
माई माई माई री
तू याद बहुत आई री!
*पूनम सिन्हा श्रेयसी, पटना बिहार
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