आनलाइन कवि सम्मेलन
एक शाम तुम्हारे नाम
आयोजक -साहित्य सरोज
सौम्य प्रकृति कीआभा में
बैठी खुले आकाश के नीचे
चंचल मन ये कैसे चुप बैठे
चल दिया अंतर्यात्रा करने
निर्विघ्न सैर का आनन्द ले
बचपन के वो दिन क्या थे
प्रातः की अरुणिमा बेला से
पर्णो पर चमकते ओंस से
माँ की ऊर्जावान गोद से
कब उठकर दौड लगाने
मेरी रमणिक अंतर्यात्रा में
मन मयूर नाचउठा यौवन में
उतार-चढ़ाव जीवन दिशा में
सुख-दुःख के झूले में झूलते
ऊँचे ख्वाब ऊँचे सपने देखते
पा लिए कभी पूर्ण मनसूबे
कही रह गये लुडकते अधूरे
समय शक्ति ने सिखला दिये थे
सब पैंतरै जीवन रणांगण के
अब क्या बाकी रहा यहाँ के
अस्त व्यस्त त्रस्त दिनचर्या में
देखा उधर पीपल मुस्कराते
लम्बी जटायें छितरी बहारें
वातावरण की झलक वृध्दता में
मेरी जरा नजरे देख रही उसे
अंतस की सुखमय यात्रा में
वह मीठे पल जब चले आते
मैं और तुम प्रफुल्लित हो जाते
इस गुप्त विचित्र अंतर्यात्रा में
निमग्न हो पूर्ण स्वच्छंदता से
अमिता मराठे
इन्दौर
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