आत्‍मकथा- आशा जाकड़

एक दिन आपका में आशा जाकड़ की आत्‍मकथा


जीवन सफरनामा

आज उम्र के 68 वसंत  पूरे करने के  बाद भी कभी कभी मन बचपन की गलियों में झांकने लगता है।मेरा जन्म आगरा के पास शिकोहाबाद में हुआ अतः बचपन वहाँ की गलियों में खेल कूदकर बीता। तीन वर्ष की  उम्र में  विद्यारम्भ होगया।जब चार वर्ष की हुई तो मेरे पापाजी आगरा बी.टी.करने गये तब मैंने  एक वर्ष अपना नाना- नानी की शीतल छांव और खूब लाड़ प्यार में बिताया।बी.टी.करते ही मेरे पापाजी को आगरा में ही रेल्वे में नौकरी मिल गई अतः एक साल मेरा बचपन आगरा में  ताजमहल की गुनगुनाती हवाओं में गुजरा। पापाजी की अध्यापन में रुचि होने से शिक्षण कार्य करने हेतु पुनः उनका आगमन शिकोहाबाद होगया। तत्पश्चात  मेरी बी.ए.तक शिक्षा वहीं पूर्ण हुई।
बचपन में कविता कहानी लिखने का बीज कब अंकुरित हुआ यह स्मरण नहीं है। हाँ बचपन में बाल सभा में नाटक करते थे, उसमें अपने बनाए गीत गाती थी । सातवीं कक्षा में में स्कूल की मैगजीन में मेरी कहानी प्रकाशित हुई ।कहानी देखकर मेरे मम्मी - पापाजी बड़े खुश हुए और आगे लिखने को प्रेरित किया। मेरे पापा अध्यापक थे अतः पुस्तकों का अंबार घर में रहता था जैसे पराग, नंदन और चंदामामा आदि। गर्मी की छुट्टियों में नानी के यहां जाते थे। मेरे नाना जी गोरखपुर कल्याण मंगाते थे । साल में प्रतिवर्ष एक विशेषांक आता था ।उनकी अलमारी में धार्मिक पुस्तकें और मामाजी की अलमारी से कहानी,कविता
और उपन्यास पढ़कर मैं बहुत आनंदित होती थी।10 वर्ष की उम्र में मैंने वाल्मीकि रामायण पूरी पढ़ ली थी। प्रतिवर्ष विद्यालय की मैगजीन में मेरी रचनाएं प्रकाशित होती रही।। 1965 में पाक ने भारत पर  आक्रमण किया। उस समय मैंनें एक कहानी लिखी जो 1966 में मेरे कॉलेज की मैगजीन में प्रकाशित हुई , वह कहानी मेरे कहानी संग्रह में संग्रहित है । 1967 में  मेरे एक सर ने मुझे मैथ्स पढाने के लिए बुलाया।इस तरह मैंने एक विद्यालय में 16 वर्ष की उम्र से ही पढ़ाना शुरू कर दिया। तभी मैंने कहानी, कविता ,नाटक और गीत लिखना शुरू किया। 1967 में मेरी सहेली को दहेज के कारण ससुराल वालों ने जहर देकर मार डाला। उस समय मेरे व्यथित मन ने कविता लिखी जो आज भी मेरी डायरी में स्थित है ।1968 में बीए करने के बाद मैंने अपनी कास्ट की मैगजीन में लेख लिखा "नारी शिक्षा  निषेध क्यों?"उस पर मुझे अच्छी प्रतिक्रिया मिली वह  लेख आज भी सुरक्षित है। तब से मेरे लेख मैगजीन  में प्रकाशित होते रहे।मैं अध्यापन के दौरान बच्चों के लिए खूब नाटक ,गीत , नृत्य नाटिका आदि लिखती रही ।1972 में मैं शादी होकर अहिल्या माँ की नगरी इंदौर में आ गई । मैंनें अपने पतिदेव को सर्वप्रथम अपने पढ़ने के प्रति रुचि से अवगत कराया। मेरे पति ने मेरी पढ़ने की रुचि में पूरा सहयोग किया और आज भी करते हैं।
अहिल्याबाई की महानता के विषय में मैंनें आठवीं कक्षा में पढ़ा था।अतः उनके विषय में  पुस्तकों के द्वारा जानकारी प्राप्त की। शादी के एक साल बाद  मैं एक पुत्र की माँ बन गई।उसके बाद मैंनें एम.ए. की पढ़ाई शुरू की। एम.ए. करने के साथ ही मैं दो बेटों की माँ बन गई।    
साहित्य - सफर की डगर बड़ी कठिन है ।
लेकिन  मे्रे कदम साहित्य के क्षेत्र में चल रहे हैं। मैं इस बात से अनभिज्ञ थी। बस संवेदना को  मैं गद्य - पद्य में चित्रित करती रहती थी।  मेरी शादी संयुक्त परिवार में हुई औजहाँ पर्दा प्रथा थी ,आने-जाने की स्वतंत्रता नहीं थी और  सारा कार्य स्वयं करना पड़ता था अतः मैंने परिस्थितियों का सामना करते हुए लेखनी को आराम करने दिया । मेेरा  परिवार    सास- ससुुुर,छै देवर और दो ननदोंं का भरा पूूरा परिवार था । 1976 मेंं तीन बच्चों की दमाँ बनने केे बाद  पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण मेरी कविताएं लोरियों में बदल गई ।1977 में आगरा B.Ed करने गई।वहाँ अध्ययन के दौरान फिर मेरी कविताएं पन्नों पर उतरने लगी।मेरी कविताएँ   कालेज की मैगजीन में प्रकाशित हुई।

    साहित्य समाज का दर्पण है और समाज की घटनाएं मस्तिष्क में कुल बुलाती पर घर की जिम्मेदारी के कारण पन्नों पर कहानी का रूप नहीं ले पाती पर मैं पाठक के रूप में साहित्य से जुड़ी रही और इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज से पुस्तकें मंगाकर पढ़ती रही ।1979 में घर के समीपस्थ एक अंग्रेजी माध्यमिक स्कूल में हिंदी, संस्कृत पढ़ाना शुरू कर दिया। तब मेरी लेखनी फिर से उठी और कविताएं , गीत , नाटक ,कठपुतली शो आदि  लिखने लगी। विद्यार्थियों के लिए वाद- विवाद,भाषण प्रतियोगिता आदि लिखने लगी । बस इस तरह चाहे -अनचाहे साहित्य सेवा होती रही।।
1984 में सेंट पॉल हाई सेकेंडरी स्कूल में अध्यापन करने के दौरान मेरी लेखनी अधिक सक्रिय हो गई ।सांस्कृतिक कमेटी की मेंबर बाद में अध्यक्ष होने के कारण एकेडमी,  धार्मिक व राष्ट्रीय पर्वों हेतु निबंध , भाषण, कविता , कहानी और गीत आदि का लेखन चलता रहा । स्कूल मैगजीन की सम्पादिका होने से खूब प्रतियोगिताएं आयोजित की और रचनाएं प्रकाशित की । विद्यार्थियों को लेकर आकाशवाणी भी कई बार गई  वहाँ बच्चों ने मेरे लिखे गीत गाए । 

1990 में गजरौला (यू.पी.)काण्ड हुआ। मैंने मंच पर एक पढ़ने के लिए एक आर्टिकल लिखा।वह आर्टिकल हमारे प्रिन्सिपल फादर को पसन्द आया और उन्होंने समाचार पत्र में भेजने के लिए कहा। मेरी वह  रचना  चौथा संसार , नई दुनिया व भास्कर में छपी ।तबसे मैं रचनाएं  प्रकाशन हेतु भेजने  लगी । 1991 में 10 मई को  दैनिक भास्कर में एक रचना " स्वतंत्र भारत में परतन्त्र नारी '" प्रकाशित हुई जिस पर मुझे काफी लोगों की बधाइयां मिली। स्कूल में अध्यापकों के आने व जाने पर स्वागत , अभिनंदन  व विदाई गीत खूब लिखे। दिसम्बर 1992 में जब बाबरी मस्जिद का मामला उठा तब मैंने पत्र के द्वारा अपने विचार व्यक्त किए। 1997 में मेरी बेटी की एक  सहेली  घर आई और उसने कहा कि मेरी मम्मी आकाशवाणी जाती हैं ,आंटी आप भी लिखती हैं आप भी जाया करिए ।उस बालिका के नानाजी  साहित्यकार थे ।उन्होंने एक काव्य गोष्ठी में मुझे आमंत्रित किया ।इंदौर की काव्य गोष्ठी में कविता पाठ करने का मेरा पहलाअवसर था । उन्होंने मुझे "गीत धारा" संस्था का सदस्य बना लिया ।वहीं मैंने चंद्रसेन विराट जी और राष्ट्र कवि पंडित सत्यनारायण सत्तन जी के दर्शन किए। 1998 में मैंने समाचार पत्र की विज्ञप्ति के द्वारा अपनी पाँच रचनाएं काव्य संग्रह में प्रकाशन हेतु भेजी। उनमें मेरी एक रचना "बेकार डिग्री" बहुत पसंद की गई ।कारगिल युद्ध के दौरान मेरी एक कविता " अग्नि बाण" में प्रकाशित हुई "मेरी बर्फ सी देहपर किसने अंगारे बरसा दिए" । उस कविता को देखकर हमारे पड़ोस में कवि राजेंद्र तपन जी ने मेरे बेटे को बुलाया और पूछा कि आशा जाकड़ कौन है ?तब मेरे बेटे ने उनसे कहा कि वह मेरी मम्मी है ।तब उन्होंने मुझे अपनी काव्य
गोष्ठी में आमंत्रित किया तब से मैं उस संस्था में जाने लगी और आज उसी संस्था की अध्यक्ष हूं। 1999 में कारगिल युद्ध ने मेरी कलम को आक्रोशित कर दिया और मेरी कलम चल पड़ी ।तभी  साहित्यकार रमेश व्यास जी ने  मुझे एक पुस्तक विमोचन में आने के लिए फोन किया , क्योंकि वह कार्यक्रम मेरे घर के समीप ही था । पहली बार मैंने  पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम देखा।
बस मैंने  भी घर जाकर अपना काव्य संग्रह निकलवाने का निश्चय किया ।कविताएं तो मेरे पास थी, मैंने कविताएँ एकत्रित की और आनन-फानन में काव्य संग्रह" राष्ट्रको नमन" निकलवाने का निश्चय किया। मैं उज्जैन गई और वहाँ "श्रीकृष्ण जी सरल "से मिली। श्रीकृष्णजी सरल मेऱे आदर्श थे , मैं उनसे मिलकर गदगद हो गई ।उन्होंने मेरी पुस्तक की भूमिका लिखी अस्वस्थता के कारण वे विमोचन के समय नहीं आ सके। एक पाण्डुलिपि  मैंने आचार्य  श्रीराम मूर्ति त्रिपाठी जी को दी ।उन्हीं की अध्यक्षता में 1999 में 2 अक्टूबर को मेरी पुस्तक का विमोचन मेरे विद्यालय में ही हुआ।मेरे पुस्तक विमोचन में केवल गिने चुने साहित्यकार थे क्योंकि मैं उस समय इन्दौर के साहित्यकारों को नहीं जानती थी । मेरे बच्चों की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। बड़े बेटे ने प्रिन्टिंग प्रेस  खोला,छोटा बेटा इन्जीनियर बन गया और बिटिया आईसीआईसी बैंक जॉब करने लगी तब मैंने हिंदी में एम.ए. किया । बच्चे शादी के योग्य हो रहे थे अतः हमने 2000  में अपना स्वयं का घर  सांईकृपा कोलोनी में बनवाया। कोलोनी नई थी ,मकान बन रहे थे ,सड़कें अच्छी हालत में नहीं थीं। बरसात में स्कूल जाने में बहुत मुश्किल होती थी। 2002 में बेटाऔर बेटी की शादी की।  कोलोनी में कोई मन्दिर नहीं था ,शाम को जब घूमते थे तो हम महिलाओं ने निश्चय किया कि  हर सोमवार को बारी बारी से भजन रखेंगे। महिलाओं का  सांईकृपा महिला मण्डल समूह विकसित होता गया और महिलाओं ने यह निश्चय किया कि सभी रहवासियों से पैसे एकत्रित कर मन्दिर बनवाया जाय। हम महिलाओं ने हर घर से पैसे एकत्रित कर  कोलोनी के गार्डन में 2008 में शानदार मन्दिर बनवाया। मैं  उस महिला मण्डल की तबसे आज तक सचिव हूँ। हम मन्दिर में धार्मिक पर्व ,राष्ट्रीय पर्व और सामाजिक जागरूकता के कार्यक्रम  करते हैं। 2003 में मेरा छोटा बेटा मुम्बई जाब करने लगा और मेरी बेटी भी  शादी के बाद मुम्बई जाब करने लगी । अभी भी मेरे दोनों बच्चे मुम्बई में जाब करते हैं अतः मेरा आना -जाना भी मुम्बई लगा रहता है।2004 में दादी,नानी बनने के पश्चात मैं साहित्यिक संस्था इन्दौर लेखिका संघ की सदस्य बनी ।उसके पश्चात अन्य संस्थाओं की भी सदस्य बनी हूँ।आज लगभग 12 संस्थाओं की सदस्य हूँ।

यहीं से मेरे साहित्यिक सफर की शुरूआत हुई।।मैं हिन्दी साहित्य समिति जाने लगी।।वहाँ की मासिक पत्रिका वीणा में कहानियाँ भेजी जो प्रकाशित हुई। इन्दौर लेखिका संघ की स्मारिका में मेरी कहानी "पुत्रमोह" प्रकाशित हुई जिसपर नारी अस्मिता मंच बड़ौदा की अध्यक्ष रचना निगम का प्रशंसा पत्र मिला जिससे मुझे हिम्मत मिली और मैंनें कहानी लेखन की ओर कदम बढ़ाया।  2007 में मैं  रंजशकलश संस्था और हिन्दी परिवार की सदस्या बनी ।इंदौर लेखिका संघ की स्मारिका में प्रतिवर्ष कहानियाँ, कविताएँ प्रकाशित होती रही और रंजन कलश के लघुकथा संग्रह और काव्य संग्रह में कविता ,कहानी का प्रकाशन होता रहा ।शुभ तारिका की संपादिका  उर्मि कृष्ण इंदौर लेखिका संघ के एक कार्यक्रम में आई तो मैंने अपनी रचनाएं शुभ तारिका के लिए भेज दी तब से मैं शुभ तारिका में रचनाएं भेजती रहती हूं ।2010 में मैंने अपनी 20 कहानियों का कहानी संग्रह  "अनुत्तरित प्रश्न" तैयार किया जिसमें 6 कहानियाँ शादी से पूर्व की हैं। 2010 में पुस्तक मेला लगा उसमें साहित्यकार मंगला रामचंद्र जी ने मुझे "समय प्रकाशन "के मालिक चंद्रभूषणजी से मिलवाया तो मैंने अपना .कहानी संग्रह 2011 में "समय प्रकाशन" को प्रकाशन के लिए भेजा। मेरा कहानी संग्रह 2 साल 3 महीने में छप कर आया और 2013 में पुस्तक का विमोचन हुआ 2013 में विश्व पुस्तक दिवस के दिन अनुत्तरित प्रश्न पर "कुसुम कृति" सम्मान मिला।  2011 में  मुझे" राष्ट्र को नमन" पर सरल अंलकरण सम्मान मिला।जब मुझे ये सम्मान मिला उस समय मैं उत्तरा खण्ड में थी अतः ये सम्मान. मुझे 2012  में प्राप्त हुआ।। 2011 में मुझे  साहित्यिक संस्था रंजन कलश   भोपाल से " राष्ट्र को नमन "पर माहेश्वरी सम्मान मिला। 2012 में रंजन कलश की अध्यक्ष रंजनाफतेहपुर   ने जे. एम.डी पब्लिकेशन दिल्ली के विषय में बताया। जे. एम .डी.पब्लिकेशन की "नारी चेतना की आ्वाज "और."श्रेष्ठ कवयित्रियाँ "में मेरी कविताएँ प्रकाशित हुई।2011-12 में अन्ना जी के आंदोलन के समय मेरी लेखनी जोश में उठ खड़ी हुई और अन्ना जी पर कलम चल पड़ी।  2012 में  मैं विद्यालय से सेवानिवृत्त हो गई और पूरी तरह से साहित्य सृजन में जुट गई।
2013 में आकाशवाणी संयोजिका बीना शर्मा के फोन  द्वारा संदेश प्राप्त कर मैंने" प्रेम सद्भाव और शांति "पर वार्ता प्रस्तुत की उसके बाद दीपावली और बरसात पर भी वार्ताएँ प्रस्तुत की।सरित साहित्य संस्थान लखनऊ   को पुस्तकें भेजी।वहाँ से "साहित्यमणिश्री"सम्मान मुझे प्राप्त हुआ।बाला घाट (म.प्र.)  और सलेमपुर( बलिया  जिला) पुस्तकें भेजी ।वहाँ से भी मुझे सम्मान प्राप्त हुआ। मेरी कविताएं अलमारी से बाहर आने को बेचैन हो रही थीं।अतः 2014 में मैंने "नए पंखों की उड़ान" को प्रकाशन हेतु भेज दिया उसका विमोचन 2015 में हुआ। ।2014 में .दूरदर्शन केन्द्र द्वारा महिला दिवस पर कार्यक्रम हेतु बुलाया गया। 2015 में "नए पंखों की उड़ान "पर शब्द प्रवाह उज्जैन द्वारा मानद उपाधि शब्द श्री सम्मान प्राप्त हुआ। 2015 में शिलांग में "महाराजा कृष्ण जैन स्मृति सम्मान और साहित्य सेवा संस्थान इलाहाबाद से मानद उपाधि "राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान" प्राप्त हुआ ।उसके बाद 2015 में ही "अस्मिता महिला मंच "बड़ौदा से फोन पर वार्तानुसार रजत जयंती हेतु मैंने  कहानी संग्रह  "अनुत्तरित प्रश्न' भेजा  उस पर मुझे  "नारी अस्मिता "प्रथम पुरस्कार मिला। 2016 में.उज्जैन में सिहंस्थ लगा तब  "नवसृजन लोक मंच 'द्वारा मेरी मित्रों ने एक सिंहस्थ पर काव्य संग्रह निकाला  जिसमें मेरी कविता भी थी।उस पर मुझे  सिंहस्थ सम्मान मिला। उस समय मैंने "सिंहस्थ  महोत्सव 2016" निबंध पुस्तक लिखी ।इसका विमोचन 2016 में 3 सितंबर को हुआ। उस दिन मेरे बेटे का बर्थडे होने से सभी आगन्तुकों को सिंहस्थ की पुस्तकें भेंटस्वरूप दीं। 2017 में इस पुस्तक पर राष्ट्रीय कवि संगम म.प्र. द्वारा "शब्द शक्ति सम्मान", बदायूँ से  "साहित्य भूषण सम्मान" व ग्वालियर से "कलमकार सम्मान" प्राप्त हुए। 2017 में रंजनकलश भोपाल से "शिवसम्मान "प्राप्त हुआ।सामाजिक कार्यों हेतु टाइम्स न्यूज़ इन्डिया ग्रुप लखनऊ द्वारा "मैं हूँ बेटी" 2017 अवार्ड से सम्मानित हुई।
इन्दौर साहित्य सागर मंच  की  पुस्तकों में रचनाएँ प्रकाशित हुई। जिस पर  पूर्णोपमाश्री सम्मान 2017 प्राप्त हुआ। 2017 में मुझे  मित्रों द्वारा "मगसम दिल्ली" संस्था की जानकारी मिली तब मैंने वहाँ रचनाएँ भेजी। 2018 में मुझे मगसम दिल्ली द्वारा शतकवीर सम्मान मिला। 2018 में साहित्य सुरभि मंच खंडवा के द्वारा "महिला गौरव सम्मान" प्राप्त हुआ।  व्हाट्सएप के द्वारा अन्तराशब्द शक्ति संस्था   और काव्य रंगोली संस्था से जुड़ी। 2019 में  विश्व पुस्तक मेले में मेरी पाँचवीं पुस्तक "हमारा कश्मीर "काव्य संग्रह का विमोचन  हुआ और अन्तराशब्द शक्ति सम्मान  भी मिला। काव्य रंगोली पत्रिका में मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुई और काव्य रंगोली संस्था द्वारा  "मातृत्व सम्मान"और "साहित्य भूषण  सम्मान 'प्राप्त हुए।विश्व पुस्तक मेले 2019 में मगसम द्वारा भी सम्मानित किया गया और 10  रचनाओं की 30 लघु काव्य संग्रह भी प्राप्त हुए। साहित्य समीर दस्तक संस्था  के काव्य संकलन में पाँच रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं और इस संस्था द्वारा "महादेवी वर्मा सम्मान "प्राप्त हुआ। 2019 में विश्व हिन्दी. लेखिका मंच दिल्ली द्वारा भोपाल में "महालक्ष्मी मेमोरियल अवार्ड "से सम्मानित हुई।  2019 अगस्त में  मगसम संस्था  द्वारा इन्दौर में सम्मान समारोह हुआ जिसमें मुझे" स्वर्ण. प्रतिभा सम्मान" उपलब्ध हुआ और "इन्दौर के मोती पुस्तक "में  मेरी  30 रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। 26 अगस्त 2019को  दूरदर्शन भोपाल मध्यप्रदेश केन्द्र पर काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ किया ।
2019 सितंबर में   विश्व हिन्दू लेखिका मंच  के "महादेवी वर्मा  सम्मान समारोह"की संयोजक बनी और "कल्पना चावला स्मृति" से सम्मानित हुई। नेशलन पीस मूवमेंट संस्था द्वारा  2 अक्टूबर को "विश्व शान्ति " विषय पर काव्य प्रतियोगिता में पुरस्कृत हुईं । 25  दिसम्बर को मुम्बई की अग्नि शिखा मंच से अग्नि शिखा गौरव सम्मान मिला।  "अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद संस्था " जिसका उद्देश्य हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा पद पर प्रतिष्ठित करवाना  और भारत के सभी प्रान्तों में हिन्दी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाये ,मैं अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद संस्था इन्दौर जिले की अध्यक्ष हूँ ।इसका गठन 1फरवरी2020 को हुआ है। हिन्दी भाषा के  प्रचार व प्रसार हेतु प्रयास रत हूँ। कहानी सुनो- सुनाओ , काव्य पाठ, बच्चों और महिलाओं के लिए प्रतियोगिताएँ आयोजित करती हूँ।निःशुल्क शिक्षण भी करती हूँ। मासिक पत्रिका "वीणा"की आजीवन सदस्य हूँ। "चिरैया",साहित्य समीर, साहित्य गुंजन, नारी अस्मिता और पवनपुत्र ,शुभतारिका आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती  है। प्रतिलिपि से जुड़ी  हूँ। आजकल सम्मान लेना, पुरस्कार लेना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है सम्मान पैसों से प्राप्त किए जा रहे हैं जो लोग न तो ढंग से लिख पाते हैं ,न बोल पाते हैं जिनके पास गिनी -चुनी  रचनाएँ होती हैं और भी पैसों के बल पर बड़े-बड़े सामानों से नवाजे जा रहे हैं आज पुरस्कारों का राजनीतिकरण हो रहा है पुरस्कारों को बड़ी आसानी से पैसे देकर खरीदा जा रहा है ।जब तक मैं विद्यालय में थी ,पुरस्कारों की नीति से अनभिज्ञ थी मेरी पुस्तक "राष्ट्र को नमन "को 12 साल बाद पुरस्कार मिला ।किसी कार्यक्रम में सुना कि देशभक्ति की पुस्तक को सम्मानित किया जाएगा तब मैंने अपनी पुस्तक भेजी और   मुझे " अलंकरण सम्मान "प्राप्त हुआ।
आज समाज में बलात्कार , अपहरण जैसी घटनाएं घटित हो रही हैं ।मन बड़ा दुखी होता है आखिर क्या करें ? बस मन आहत होता है तो कलम चल पड़ती है। अभी हैदराबाद की "दिशा गेंगरेप  हत्याकांड " के समय मेरा लेख "दरिन्दों को फांसी कब ?"इन्दौर समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ ।लेख छपे या न छपे पर लिखकर आत्म संतुष्टि होती है। मैं लेखन बिना किसी पुरस्कार की तमन्ना  से ही करती थी। मेरी 40 साल पुरानी कहानियाँ, और कविताएँ अब प्रकाशित हुई हैं । मेरा जीवन  ही कविता है । आज मित्रों के सहयोग से मेरी आलमारी सम्मान से सजती जा रही है। बस इच्छा है कि कलम चलती रहे ,समाज व देश हित लिखती रहे । मुझे लेखन में घर वालोंका पूरा सहयोग मिलता है। समाज व राष्ट्र के लिए कुछ कर सकूँ तभी जीवन की सार्थकता है। मेरे जीवन का फलसफा है ।
"जो अपने लिए जिया ,वो क्या जिया ।
जीवन उसी ने जिया जो देश हित जिया।"

 

आशा जाकड़ ( लेखिका )
पता-747,सांईकृपा कोलोनी
      होटल रेडिसन के पास
     कुशाभाऊ ठाकरे मार्ग
    इन्दौर म.प्र. 452010
    9754969496 



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