अभी अभी -रेखा दुबे

ख्वाबों में ग़ज़ल कोई गाई थी 
अभी अभी,
मिरे जख्म पर मरहम लगाई थी 
अभी अभी।
शर्म- ए - हया के पर्दे उड़ाकर 
चली है जो,
हमको वो हवा नजर आई थी 
अभी अभी।
मौत के बादल छंट जाते पर  
कैसे कहैं,
ये जहर  जमात भरे लाई थी 
अभी अभी।
गुमसुम शहर,सूनी सड़कें रोती 
दुल्हन कि,
गुलमोहर ने सेज बिछाई थी 
अभी अभी।
दहशत के बादल गर्दिश बनकर 
छाए है,
यहीं कहीं मौत मुस्काई थी 
अभी अभी।



रेखा दुबे, तिरूपति पैलसे, विदिशा मध्‍यप्रदेश


 



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