अकेलापन-अजनबी

बनारस स्टेशन पर बहुत भीड़ थी । इसी बीच में अपने पिताजी के साथ में एक बहुत ही सुंदर चुलबुली लड़की मासूम मुनिया अपने पिताजी के उंगली पकड़कर प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ रही थी।
अचानक मुनिया एक जगह रुक गई। और एक दुकान की तरफ इशारा करके अपने पिताजी से बोली । पिताजी हमको एक गुड़िया खरीद दीजिए मैं उस गुड़िया की शादी करूंगी।
पिताजी बोले- हा , हा  बिटिया  क्यों नहीं गुड़िया को लेकर शादी रचाओगी पिताजी एक चुटकी लेकर बोले- कुछ दिन के बाद अपनी लाडली बेटी की शादी करूंगा। हमको बहलाइये नहीं पिताजी पहले हमको  गुड़िया दिलवाईये, मुनिया थोड़ा नाराजगी भरी स्वर में बोली? पिताजी बोले- ठीक है बेटी तुम्हारे लिए एक गुड़िया के साथ में अपनी बेटी को एक गुड्ढा भी खरीद लेते हैं। मुनिया बोली गुड़िया के साथ में गुड्डा क्यों ले रहे हैं, पिताजी पिताजी बोले - अरे हमारी प्यारी मुनिया जब गुड्डा  नहीं रहेगा तो अपनी गुड़िया की शादी किसके साथ करोगी। मुनिया एक मासूमियत भरी एक सवाल किया । पिताजी मेरे लिए भी इसी तरह का एक सुंदर सलोना गुड्डा खरीद दीजियेगा । पिताजी बोले हा हा बेटी क्यों नहीं इस से भी सुंदर हम तुम्हारे लिए गुड्डा ले आएंगे।


  गाड़ी को कुछ समय बिलम्भ से चलने की सूचना पाकर मुनिया के  पिताजी  साफ-सुथरा जमीन देखकर एक पेपर बिछाकर अपना आसन लगा लिए ,उसी जगह पर मुनिया गुड्डा और गुड़िया से खेलने में मगन हो गई । कुछ पल खेलने के बाद मुनिया को भूख लग गई ,वह अपने पिताजी से बोली? पिताजी बोले- ठीक है बेटी तुम यहीं पर बैठो मैं अभी रोटी लेकर आता हू ।
मुनिया बोली पिताजी थोड़ा जल्दी आइएगा । हमें बहुत जोर की भूख लगी है । मुनिया की बात सुनकर पिताजी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए। मुनिया अपने पिताजी को जाते एकटक निहारती रह गई और इस विश्वास के साथ की पिताजी हमारे लिए रोटी लेकर जरूर आएंगे।
     सब कुछ सामान्य था। अचानक एक जोर का धमाका हुआ । चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई । जो भी जहां पर था वहीं से सब भागने लगे लेकिन मासूम मुनिया को कुछ पता नहीं था। कि ऐसा क्या हो गया बस उसको इतना पता था । कि मेरे पिताजी मेरे लिए रोटी लेने गए हैं । और वह जल्द ही आएंगे। कोई पूछता की बेटी तुम्हारे साथ कौन है। तो बोलती कि हमारे पिताजी रोटी लेने गए हैं । लेकर आते ही होंगे । तब तलक भीड़ को चीरते हुए वह दुकानदार उस मुनिया के पास पहुंचा जो कि वह मुनिया के पापा को गुड्डा और गुड़िया दिया था।
  एक व्यक्ति उस दुकानदार से पूछा क्या आप इस लड़की को जानते हैं। दुकानदार बोला - नहीं हम इस लड़की को नहीं जानता ।लेकिन मैं इस लड़की के पिता को पहचानता हूं। कुछ देर पहले इस लड़की के पिता ने मेरे दुकान से अब गुड्डा और गुड़िया खरीदे थे। बहुत प्यार से इसके पिता ने गुड्डा और गुड़िया को दिलवाए थे । और यह भी बोले की बेटी बिना गुड्डा की गुड़िया की शादी कैसे होगी इसकी भी शादी उसके पिता ने बहुत धूमधाम से करना चाहते थे । यह बात हमसे गुंडा लेते वक्त बोले थे। लेकिन क्या किया जा सकता। जो भगवान को मंजूर था। वही हुआ। उनको यह बात मालूम नहीं था की जो बात मेरी बेटी से कह रहा हूं। इसको पूरा कर सकूंगा कि नहीं । उसके पिताजी जो अभी-अभी बम धमाका हुआ था उसने मारे गए । जो कि कमर का नीचे वाला भाग का कुछ पता नहीं चला उनका ऊपर वाला आधा भाग शव के साथ में रखा गया है। वह दुकानदार मुनिया को लेकर उसके पिता के पास ले गये।
अपने पिताजी के शव को देखकर मुनिया  फूट-फूट कर रोने लगी । उस मासूम सी बच्ची का रोना सबको अंदर तक झकझोर दिया। मुनिया बेसहारा अकेलापन महसूस करने लगी। और इसके सिवा कोई नहीं था। वह अपने पिताजी के शव के साथ लिपटकर जोर जोर से रोने लगी। वह अभी जो शव आधा हो चुका था। अपने पिताजी के शव को हिला  हिला  कर बोलने लगी । पिताजी उठिए पिताजी हमको बहुत  जोर से भूख लगी है। हमें रोटी दीजिए पिताजी हमको रोटी दीजिए आप हमसे बहाना करके यहां पर आकर सो गए। हमारे लिए रोटी नहीं लाये पिताजी हमें रोटी दीजिए हमको भूख लगी है उठिए ना पिताजी उठिए आप सुनते क्यों नहीं हमको रोटी चाहिए पिताजी हमको रोटी चाहिए।
   यह बात मुनिया को नहीं पता कि उसके पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे ।आज क्या , वह कभी भी मुनिया के लिए रोटी नहीं ला सकते। दुनिया एकदम अकेली हो गई।अब इसके आगे पीछे कोई नहीं था । कि अब वह कहां जाएगी।
मुनिया के पिताजी के जेब से आधार कार्ड का फोटो स्टेट का पन्ना मिला । उससे पता चला कि वह बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले थे। उसी पता पर मुनिया को सरकारी मदद से पहुंचाया गया ।जब मुनिया घर पहुंची तो पता चला कि मुनिया के पिताजी बनारस कैंट स्टेशन पर विस्फोट में मारे गए पूरा परिवार दहाड़ मार कर रोने लगा । क्योंकि मुनिया पाँच  लड़कियों में सबसे छोटी थी। उसके पिता ने एक पान की दुकान के सहारे अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे थे। मुनिया के घर पूरा सूना सूना हो गया। लेकिन अब क्या होने वाला था जो होने वाला था सो हो गया । वाह रे आतंकवाद एक गरीब परिवार की सारी दुनिया हिला कर रख दिया। और आज तक सरकारी मदद भी उस परिवार को नहीं मिल रहा।
जब किसी परिवार का मुखिया इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है । तब उसकी कमी खलती है। तभी  अकेलापन महसूस होता है कि आज मेरे परिवार में कमाने वाला कोई नहीं कैसे घर परिवार चलेगा। ये  तो भगवान ही जानता है।


          उपेंद्र अजनबी 
             सेवराई भदौरा गाजीपुर 
      मोबाइल 7985797683


 



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