कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता कहीं जमीन तो कहीं आसमां नहीं मिलता यह कहना बिल्कुल सही है हम जितना चाहते हैं उतना नहीं मिलता कुछ ना कुछ कमी जरूर रहती है या ऐसा कह लो ,कि इंसान के फितरत हे भगवान ने ऐसी बनाई है कि उसकी जरूरत का अंत ही नहीं होता
इंसान का मन भागते रहता है एक जरूरत पूरी हुई नहीं की दूसरे की कल्पना करने लगता है भगवान ने इंसान को मन ही क्यों दिया अगर मन ना दिया होता तो उसमें चाहत ना होती खैर ऊपर वाले की रचना पर संदेह भी नहीं किया जा सकता भगवान ने तो अपनी तरफ से अच्छे इंसान बनाएं पर इंसान धरती पर आकर लालची स्वार्थी बन गया है तो भगवान भी क्या करें इंसान चाहता क्या है और उसे क्या मिल जाता है या कह लो बहुत कुछ मिल जाने पर भी एक अकेलापन जरूर खलता है मन को कि कोई ऐसा साथी हो जो बिना कुछ कहे ही हमारे मन के भाव को समझ ले और हर उलझन परेशानियां से कहीं दूर सुकून भरी जिंदगी में ले जाए जिंदगी की ज्यादा खामोशियां भी बहुत चुभती है सब कुछ है दौलत बिछी है सुख सुविधाएं हैं फिर भी अगर मन अकेला है तो यह सब किस काम का घर खूब बढ़ा पर अगर वहां सिर्फ तनहाई रहती हो तो किस काम का जिंदगी में एक नं एक दोस्त होना चाहिए जो हमें हंसाए और बिना कुछ बोले ही हमारे मन की बात समझ जाए
क्योंकि अकेलापन बहुत खलता है जीवन मे ।
कंचन जायसवाल
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