अकेलापन-मधु

दिल में तेरी यादों के हिचकोले लिये फिरते हैं
बिन पिये ही तेरे कूँचे में मदहोश हुये फिरते है


तेरी बेरुखी का अन्दाजा है मुझको इस कदर
गमों से भरे हुए प्याले आँखों में लिये फिरते हैं


तमाम उम्र गुजार दी मैंने तेरे इन्तजार में यूँ ही
तू आयेगा इसी उम्मीद की लौ जलाये फिरते हैं


कायनात के हर जर्रे में ख़ुदा का है नूर झलकता
बेवजह ही उसे पत्थरों में खोजा किये फिरते है


भूल भुलैया सी इस दुनिया में खुद को भूल गये 
झूठी शोहरत की खातिर ईमान गँवाये फिरते हैं


सावन में जब गुँचे कलियों को पुकारा करते हैं
पतझड़ के सूखे पत्ते भी झाँझ बजाये फिरते हैं


मौला तेरे इंसानों से अब कोई शिकवा नहीं है
मीरा सी भक्ति की "मधु"हसरत लिये फिरते है
             ।। मधु ।।



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