भैया मैं हूँ अखबार
ताजा खबरों का नित लाऊँ भण्डार
जनता अक्सर हो जाती जब
राहजनी, चैन स्नेचिंग , हत्या,
डकैती, बलात्कार की शिकार
तब मैं अवाम की आवाज़ बनकर
सुर्खियों में लाऊँ ये सारे समाचार
मैं हूँ अखबार
हॉ, भैया मैं हूँ अखबार
देश विदेश खेल जगत साहित्यिक आचार विचार
विश्व आर्थिक मंदी या विकासशील बाजार
कैरियर सेवा योजन हो या हो बेरोजगार
बच्चों का कोना हो या आध्यात्मिक व्यवहार
नवीन पहेलियों संग
फिल्मी मस्ती भरे मनोरंजन
लाता हूँ मजेदार
मैं हूँ अखबार
हॉ, भैया मैं हूँ अखबार
मुझे पढकर अफसरशाहों की
गहरी नींद है खुल जाती
अक्सर होती है जब कागजी कार्रवाई
भेद खोलता हूँ मैं तब होती सुनवाई
किये थे जहाँ जिसने जैसे घोटाले
तब अॉखो से हटते हैं परदे काले
सरकार से जनता तक मेरा आधार
मैं हूँ अखबार
हॉ, भैया मैं हूँ अखबार
लोकतंत्र का स्तंभ हूँ
जन मन के भावों की जंग हूँ
स्वतंत्र अस्तित्व मेरा है
बेव पोर्टल टीवी पर भी डेरा है
नित नवल कलेवर में
खोलता नये राज हूँ
गरीब मजलूम की आवाज़ हूँ
बेबाकी की परवाज़ हूँ
मैं हूँ ज्ञान खजाने का भण्डार
मैं हूँ अखबार
हॉ , भैया मैं हूँ अखबार
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ
0 टिप्पणियाँ