कभी देखा है अमावस की,
काली रातों के बाद के चांद को,
धरा को देख,
जैसे मुस्कुरा रहा हो
मुस्कुराहट के पीछे एक
दर्द छिपा है
फिर से बिछड़ जाने को
फिर भी धीरे धीरे
बाहें फैलाता भर लेता है
अपने आगोश में धरा को
पूर्णमाशी की रात को,
और धरा भी जगमगा
उठती है ओढ़कर
हसीन सफेद चुनर को,
कुछ पल की खुशियों
को समेटे दोनों
जुदा हो जाते है,
फिर अमावस की
रात को..................
प्रियंका गौड़
जयपुर राजस्थान
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