अमर बनाती पुस्‍तकें- रेखा

पुस्‍तक दिवस पर विशेष


किसी भी भाषा में लिखी गई लिपिबद्ध गद्य या पद्य रचना को जब हम पांडुलिपि बना कर किताब के रूप में प्रकाशित करवाते हैं तो वह अपनी योग्यता अनुसार कृति या अमर कृति बन जाती है।
ओर यही कृति पुस्तकों के रूप में जब हमारे सामने आती है तो वह अपने ज्ञान के भंडार से पढ़ने वाले को भी आत्म ज्ञान की अनुमोल भेंट देती है।जो कि मानव के बौद्धिक बल के लिए टॉनिक का काम करती है बशर्ते लिखने वाले के बौद्धिक बल में भी प्रखर तेज की प्रबलता हो।वास्तव में ये पुस्तकें हमारी सच्ची साथी और पथप्रदर्शक होती है। यह हमारे भूत वर्तमान और भविष्य के निर्धारक भी करती है तथा यही हमारी धार्मिक आस्था,परंपरा और नीतियों का निर्धारण भी करती है।वही पुस्तकें हमें आत्म चिंतन के लिए प्रेरित करती है और इस चिंतन से जो आत्मिक मंथन होता है वही हमारे ज्ञान के कपाट भी खोलता है ।
यही पुस्तकें हमारे इतिहास में घटित घटनाओं के लिए व हमारी सामाजिक,धार्मिक आर्थिक और राजनीति परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए आगे के वर्तमान और भविष्य को निर्धारित करने का उत्तम जरिया बनती है ।इन किताबों के अध्ययन अध्यापन के द्वारा हम अपने भूत काल की विषय परिस्थितियों का अध्ययन कर के वर्तमान के लिए सीख ले सकते हैं तथा भविष्य को एक नई दिशा प्रदान कर सकते है।पुरातत्ववेत्ता की डायरी हमारी लाखों करोङो वर्ष पुरानी सभ्यता संस्कृति को अपने पन्नों में सहेज कर रखती है।जो हमें हर पल एहसास कराता है कि करोड़ो वर्ष पहले हम कैसे ओर क्या थे?.उसी तरह एक इतिहासकार द्वारा लिखा इतिहास हमें हमारे भूतकाल में हुई राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक कारणों से हुई अच्छी बुरी घटनाओं का साक्ष्य देता है ।जिससे हम उसके अच्छे बुरे परिणामों से सीख ले सकें ।
धर्म को परिभाषित करते हमारे धार्मिक ग्रंथ हमारे नीति- पुराण हमारे संविधान के नीति निर्देशक तत्व से लगाकर हमारे काव्य,महाकाव्य चिकित्सा शास्त्र योग-साधना-सूत्र अगर पुस्तकों के रूप में हमारे पास नहीं होते तो शायद आज हम अपनी इस अमूल्य संपदा से वंचित होते और हमारे पास आज अपना कहने के लिए कुछ भी नहीं होता ।पुस्तकें हमारी सच्ची दोस्त ही नहीं हमारे लिए हमारी सच्ची पथप्रदर्शक है हमारी गुरु है । चाहे कोई भी हमारा साथ छोड दे लेकिन जो ज्ञान हम पुस्तकों से प्राप्त करते है वह हमारा  साथ कभी नहीं छोड़ता जो ज्ञान हम अपने अनुभव द्वारा पुस्तकों में लिखकर दूसरों  तक पहुचाते है वह हमारे द्वारा अपनी आगे की पीढ़ियों को दिया जाने वाला अमूल्य योगदान होता है ।कभी यही पुस्तकें हमारे अकेलेपन की साथी भी बन जाती है तो कभी हमारी पथप्रदर्शक तो कभी जीवन की वो कुंजी बन जाती है जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें मुसीबतों से लड़ते रहने के लिए प्रेरित करती रहती है ।पुस्तक दिवस पर अपनी ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ मैं माँ सरस्वती से प्रार्थना करती हूँ कि वह हम सभी लेखकों को उच्चस्तरीय साहित्य लिखने की प्रेरणा देती रहें ।



रेखा दुबे
तिरूपति पैलसे विदिशा - मध्यप्रदेश


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