बारिश के बाद
तारों पर
खिड़कियों की सलाखों पर
अलगनियो पर
टंगी कई बूंदे
कभी वेग से आती एक
लिपटती किसी दूसरे से
फिर सह नहीं पाती भार
एक दूसरे का
और' टप '
'टप 'टप' टप'
निरंतर कुछ देर चलता यही क्रम
फिर धीरे-धीरे...
जैसे सोचते ,सचेत होते
अपनी ही जगह पर
खड़े रहने का संकल्प लें
नहीं आलिंगनबद्ध करती दूसरी किसी बूंद को
अडिग, मौन ,सतर्क खड़ी रहती है
खुद को संभालती
फिर अचानक' टप'.....
डा0 विजेता साव
कोलकता
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