अस्तित्व व्यावहारिक-संजय वर्मा


एक दिन आपका के तहत

 

वाक् स्वतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार अपनी सीमाओं के दायरे में बंधे अवश्य | वाक् स्वतंत्र और अभिव्यक्ति की कलम सही स्थिति को बोलने लिखने पर ठहर जाती है  ये ठहराव उन लोगों पर हावी होता है ,जो किसी दायरे से बंधे हुए है | इसमें गुलामी और आजादी का भेद नहीं करना चाहिए | स्वतंत्रता  मात्र  स्वतंत्रता का नाम नहीं बल्कि वर्षों की हमारी मानसिकता की गुलामी वाक् स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी है | स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ दायित्व निभाने से भी स्वतंत्र होता है | अस्तित्व व्यवहारिक रूप में भी होना चाहिए | वाक् स्वतंत्र और अभिव्यक्ति की सीमाएँ अनंत है | आजादी मिलने के बाद मस्तिष्क को ताजी  हवा अभिव्यक्ति के रूप में मिलने लगी वो भी देश के शहीदों की वजह से |वाक स्वतंत्र और अभिव्यक्ति से सभ्यता,संस्कृति,नए विचार आदि विकसित हुए है | यहाँ कहना न्यायोचित नहीं होगा कि स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के पीछे कोई दबाव नहीं है ,दबाव तो है| अगर वाक् स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति करने में झूठ,असत्यता है तो नुकसान अभिव्यक्त करने वालो का ही होगा | उसी की प्रतिष्ठा पर आँच आएगी | बदलते परिवेश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो है ही किंतु उसके दायरे है क्योकि स्वाभिमान व विवेक का अस्तित्व अच्छी व सही स्थिति की अभिव्यक्ति के आधार पर टिका रहता है | जिससे हम अपने सही अधिकारों एवं हकों को अभिव्यक्त कर सकते है | संविधान के अनुरूप अपने अधिकारों एवं दायित्वों का पालन करने से हम अपने अधिकारों को पहचान सकते है  वाक् स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की पूर्ण समझ भले ही प्रत्येक नागरिक को हो किंतु उसकी समझ ये होनी चाहिए कि वह जिस दायरे में कार्य का पालन कर रहा है उसके हितो को ध्यान रखकर  वाक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति सोच समझकर ही व्यक्त करें | 


 

संजय वर्मा 'दृष्टी ', मनावर (धार )

 




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