बाल कविता-अनुरंजन

मिट्टी की रेल ( बाल कविता)


आओ  सभी मिलकर
बनाओ  मिट्टी की  रेल
ज़रा सा  मैं  चलाऊँगा 
ज़रा  सा  तू  चलाना।


मिट्टी  की  रेल  है यह
बच्चों  का खेल है  यह
न है कोई आवाज़ फिर
भी है हम सब को मज़ा।


इस खेल में किसी को न
करना है  बहाना   कभी
इसे थोड़ा  चलाना सभी
मिट्टी का बना है खिलौना।


यह चलेगी बिना तेल से
यह बनेगी  बिना सेल से
 बच्चों की है अच्छी रेल
यह बनी है सब के मेल से।



     अनुरंजन कुमार "अंचल"
         अररिया, बिहार


 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ