बरतन सारे ख़ाली है
चिंतित घर का माली है...
कैसी ये बदहाली है
जीवन क्या ये गाली है...
कल भी भूखे सोए थे
माँ से चिपक के रोये थे...
खोयी चेहरों से लाली है
माँ की बेची बाली है....
परियों की कहानी न भाती है
सूखी माँ की छाती है...
कोई सच नहीं सब जाली है
गुम हुई हरियाली है...
आशा है कोई आएगा
भर पेट खाना लाएगा...
भरेगी अब थाली है
साँझ ढलने वाली है...
क्या चंदा मामा आएँगें
क्या खीर -पूरी लाएँगे ...
रात बड़ी ये काली है
बात सोचने वाली है
बस दो रोटी भी आ जाए
नन्हें को खिला पाएं
तेरी बात निराली है
की सबकी रखवाली है
तू भरता सबकी प्याली है
विपदा सबकी टाली है...
कान्ता अग्रवाल
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