बच्चों में भोजन की उदासीनता, दोषी कौन? किरण बाला

"शुद्ध आहार,विचार,आचार 
हैं स्वस्थ जीवन के आधार"


किसी भी व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक विकास उसके द्वारा ग्रहण किये आहार पर निर्भर करता है| कहा भी गया है, 'जैसा खाओ अन्न , वैसा होए मन'|आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बच्चों में खान -पान के बदलाव के कारण पौष्टिक आहार के प्रति अरूचि उत्पन्न होती जा रही है जो कि एक चिन्ता का विषय है| खान-पान की मिश्रित संस्कृति के चलते उसमें बदलाव आना एक सामान्य बात है| कहीं न कहीं यही बदलाव बच्चों में भोजन के प्रति उदासीनता का कारण बनता जा रहा है|


बच्चों में खान -पान की आदत शैशवकाल से ही विकसित होती हैं |बच्चों को 2-6 वर्षों के मध्य जो कुछ भी खिलाया जाता है उसका स्वाद उन्हें जीवन भर नहीं भूलता | यही वो अवस्था है जहाँ से बच्चे में स्वाद विकसित होता है | बच्चा भोजन के रंग, रूप और स्वाद के प्रति जल्दी ही आकर्षित हो जाता है |कोई भी भोजन यदि आकर्षक रूप में परोसा जाए तो वह उसे रूचि से खा लेता है | एक ही चीज से जल्दी उकता जाना बच्चे की स्वाभाविक प्रकिया है इसीलिए वह बार-बार नए कपड़े, खिलौने और भोजन की माँग करता है |


भोजन में विविधता की कमी, बच्चे को बार -बार एक ही चीज को खिलाना, पेट भर जाने के उपरांत अधिक भोजन करने को तत्पर करना, बच्चों को किसी भी कार्य पूर्ति हेतु चॉकलेट, पिज्जा, बर्गर, पेस्ट्री आदि जंक फूड का लालच देना,उसकी मन:स्थिति समझे बिना ही डाँट-डपट कर भोजन कराना आदि बहुत से ऐसे कारण हैं जिससे बच्चों में भोजन के प्रति उदासीनता का भाव उत्पन्न होता है |आज के इस भाग-दौड़ से परिपूर्ण जीवन में समय की व्यस्तता के कारण हम बच्चों को झटपट तैयार हो जाने वाले व्यंजन खिलाकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं|भूख लगने पर बच्चों को चिप्स, बिस्कुट, पेस्ट्री पकड़ना या फिर 2 मिनट्स नूडल्स बना कर दे देना, बच्चों को बाजार से चीजें खरीदने के लिए पैसे देना हमारी दिनचर्या में इस तरह समा गए हैं कि हम ये जान ही नहीं पाते कि हम स्वयं ही बच्चों की पौष्टिक भोजन के प्रति उदासीनता का कारण बनते जा रहे
 हैं |  'बच्चा कम से कम कुछ तो खा रहा है, भूखा तो नहीं है' यह सोच भी बच्चे के लिये घातक सिद्ध होती है | जब तक हमें इस बात का अहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है |


खान-पान की मिश्रित संस्कृति के चलते हमें विभिन्न प्रांत के भोजन एक ही जगह पर उपलब्ध हो जाते
 हैं | युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही बच्चों के मन में नए व्यंजनों के प्रति उत्सुकता बढ जाती 
है |रेस्तरां में  जाकर विभिन्न देशों के व्यंजन, अपौष्टिक जंक फूड के प्रति बढती लालसा एक स्टेट्स सिम्बल बन कर रह गया है जो कि स्थानीय भोजन के प्रति उदासीनता का मुख्य कारण बनता जा रहा है| 
अब प्रश्न ये उठता है कि इसके लिए जिम्मेवार कौन है? बच्चा स्वयं, अभिभावक, समाज, हमारी मानसिकता, आलस्य या फिर जागरूकता का अभाव? कहीं न कहीं किसी हद तक ये सभी इसके उत्तरदायी हैं और सबसे अधिक अविभावक जो जाने अनजाने ही  ऐसी गलतियांँ कर जाते हैं जिसका परिणाम उन्हें स्वयमेव भुगतना पड़ता है |


बच्चों में पौष्टिकता का अभाव जहाँ विभिन्न रोगों का कारण बनता है वहीं मानसिक दुर्बलता का भी | यदि बच्चों में समय रहते खान-पान की सही आदत नहीं डाली गई तो भविष्य में उससे उबरना कठिन है |
बालपन से ही भोजन के साथ -साथ खाद्य पदार्थों के गुणों व उपयोगिता को बच्चों को बताने से न केवल उनकी भोजन के प्रति उत्सुकता बढेगी अपितु उनका  
ज्ञानवर्धन भी होगा | बच्चों की दिनचर्या में बदलाव लाकर उन्हें उत्तम स्वास्थ्य व आहार की उपयोगिता बताते हुए समयानुसार सोना, जागना, खेलना पढना आदि की आदत डालनी होगी | बच्चे तो कुम्हार की माटी की तरह होते हैं जैसे ढालो वैसे ही ढल जाते हैं | 
बच्चों से अधिक कहीं न कहीं हमें बदलने की आवश्यकता है |


                 ---©किरण बाला 
                      (चण्डीगढ़)



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