एक दिन आपका में अमिता मराठे का लेख
भारतीय संस्कृति में भोजन करना एक यज्ञ के समान होता है।शरीर की उर्जा को बनाये रखने के लिए पेट की जठराग्नि में धरती से प्राप्त अन्न की आहुति देना ही सत्य धर्म है।किन्तु मनुष्य जब मुख सुख जिव्हा तृप्ति के लिए जीवो को मारता है तब उसकी पैशाचिक वृत्ति उग्र होकर उसे अनेक पापो का भागी बना देती है ।
कलकत्ता मे मैंने देखा काली माँ के मंदिर के इर्दगिर्द छोटे छोटे मांस के टुकडे पडे थे।मंदिर में प्रवेश करने पर देखा दो मासूम बकरे फूलो से सज्जित एक बड़ी शिला के पास खड़े थे।आगे की कल्पना से मैं सिहर गई ।मन्नते मांगने वाले नये कपड़े पहने खड़े थे।सारा दृश्य एक मूक प्राणी के साथ विश्वासघात करता हुआ सा प्रतीत हो रहा था ।
यदि हम किसी को जीवन दे नही सकते तो उसे मारने का भी अधिकार नहीं।मारकर फिर पकाकर खाना पाप की अति है।एक बार पशु पक्षियों ने भगवान् से पूछा कि हमारे पास वाणी नहीं हैं हाथ नहीं हैं तो हम कैसे जीयेंगे तब भगवान् ने कहा " मैंने मनुष्य को वाणी व हाथ देकर भेजा हैं।वे तुम्हारी पालना करेंगे ।लेकिन विडम्बना देखिये रक्षक ही भक्षक बन गये।सर्वे संतु निरामय " का सिध्दांत इंसान भूल गया है।जब प्राणी को मारते है तब वह रोता है।कातर वाणी में प्राणो की याचना करता है।दया की भीख मांगता है चिल्लाता है।आंखे लाल हो जाती है।घबरा कर मुंह से छाग निकालता हैं।किन्तु निष्ठुर निर्दयी मनुष्य धर्म की आड में उसे मौत के घाट उतार देता है।
निश्चित ही मांसाहार मेें जो जो सहयोगी बनते हैं वे सभी पाप के भागी बनते है।वर्तमान में करीब आठ सौ बीमारियाँ मांस खाने से होती है।मरते समय प्राणी की बद्दुआ करूणा व पीडा के तरंगे सारे वायुमंडल मे फैलती है।जिससे प्राकृतिक अपदाओ की संभावनायें बढ जाती है।
संत कहते हैं रसोईघर को कब्रिस्तान मत बनाओ जो शव कब्रिस्तान मे जलाया जाता हैं ।मनुष्य उसे रसोई मे पकाता है।इस अमानवीय कृत्य को हमारे देश के ख्याति प्राप्त अभिनेता अमिताभ बच्चन, जुही चावला ,महात्मा गांधी अब्दुल कलाम आदि शाकाहारी दिग्गज निन्दनीय समझते है ।जानवरो में घोड़ा हाथी भी शाकाहारी है।मांसाहारी की उम्र कम होती है ।कछुआ150 वर्ष और तोता पचास वर्ष जीवन का आनंद ले सकता है।जीवन का सत्य आनन्द किसी की बलि देना नहीं बल्की हर जीव का कल्याण करना है।
जैसी करनी वैसी भरनी इस सत्य को भूलाया नहीं जा सकता ।क्यो कि आज सारा विश्व कोरोना जैसी महामारी से झुज रहा है।ऐसी बीमारी जिसका कोई इलाज नहीं ।यदि मनुष्य स्वयं को नियन्त्रित नहीं करेगा तो विनाश के संकेत स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।दर्द भरी चीखे गूंज रही हैं।विकार जनित अपदायें विश्व को लील लेगी ।आओ अब तो सम्हल जाये।
अमिता मराठे
इन्दौर
मौलिक
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