बिरहन-पाखी

दूर कहीं जब दिन ढल जाये ,साँझ की दुल्हन बदन चुराये ,चुपके से आये ।मेरे ख्यालों के आँगन में ...
"मरी कलमुही, इसके शौक खतम न हुये। कुछ तो शर्म कर ले बेशर्म ..।"चेयर पर आँख मूँदे काव्या चुपचाप गाना सुन रही थी। कि तभी माँ ने आकर टी.वी. बंद कर दिया। पुराने गीत काव्या को वैसे ही पसंद थे ,पर जब से मधुरम छोड़ के गया दर्द भरे गीत भी उसकी पसंद में शामिल हो गये थे। सबके सामने तो रोने की भी इजाजत न थी। देर रात को टीवी. पर पुराने गीत आते थे ।धीमी आवाज में सुन के दिल के दर्द को आँसुओं में बहा लेती थी।
आँखों पर तेज रोशनी के साथ माँ की आवाज कानों में पड़ते ही फुर्ती से आँसू पौंछ आँख खोल दी।
"क्या हुआ ?"
"क्या हुआ ,अब ये भी मैं बताऊँ?सारे समाज में जग हँसाई हो रही है ।किस किस को जबाव दूँ।मर क्यों न जाती कहीं जाके।टसुये बहा कर क्या दिखा रही?"माँ की आवाज कानों में सीसा घोल रही थी।
माँ कमरे से जा चुकी थी। काव्या बिस्तर पर लाश की तरह लुढ़क चुकी थी। तकिये में मुँह छिपा कर फफक पड़ी।
कालेज की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी।काव्या के लिए उचित घर वर की तलाश जारी थी। खाली वक्त बिताने हेतु पिता ने इजाजत दे दी थी जॉब करने की। लिखने पढ़ने की शौकीन काव्या को पत्रकारिता का भी शौक था। शहर में ही एक पब्लिकेशन को एडीटर की आवश्यकता थी ।उसकी योग्यता के आधार पर वहाँ रख लिया गया।
उसके काम के प्रति समर्पण ,लगन देख कर पब्लिकेशन चीफ खुश थे। उस दिन काम न होने व तवियत कुछ हल्कीहोने के कारण वह जल्दी घर वापिस जाने की इज़ाजत ले कर निकलने ही वाली थी कि मधुरम वहाँ आ गया।
उसका गीत संग्रह वहाँ प्रिंट हो रहा था। उसकी रचनाओं की एडीटिंग भी काव्या ने ही कीथी।
पर वह मधुकर को नहीं जानती थी।
"मैडम ,सर आपको बुला रहे हैं।"
आफिस में पहुँच कर उसने अंदर आने की इज़ाजत माँगी।
"आओ काव्या। माफी चाहता हूँ आपको रोक लिया। बस पाँच मिनिट का काम है।आओ बैठो।"
"जी सर कोई बात नहीं। बतायें।"कहते हुये वह चेयर पर बैठ गयी। मधुरम की ओर इशारा करते हुये सर ने कहा ,"काव्या ,ये मधुरम जी हैं। इनकी बुक की एडीटिंग आपने ही की है।जिसे देख ये खुश हैं।इस बुक के बाद दूसरी बुक भी यहाँ से ही पब्लिश कराना चाहते हैं।"
जी धन्यवाद सर ।ये तो खुशी की बात है।
"मधुरम जी ,आप जो भी बदलाव चाहते हैं काव्या जी को बता दीजिए। कर्मठ और योग्य एडीटर है ये।"
"मधुरम् पहले ही देख रहा था काव्या को ।हाथ जोड़ते हुये बोला कि आपने मेरी रचनाओं को बहुत अच्छे से सँभाला है ।इसके लिए आपका आभारी हूँ ।बस थोड़ा सा कष्ट देना चाहूँगा।"कहते हुये उसने रचनाओं की रफ फाइल निकाली। जो परिवर्तन चाहता था बताया।
"जी सर ,अगर आप इजाजत दें तो मैं घर ले जाऊँ। कल आते वक्त ले आऊँगी।"ओके काव्या, जाओ तुम ।कहते हुये सर ने वो फाइल पकड़ा दी।
दूसरे दिन आफिस आई तो देखा मधुरम पहले से ही वहाँ आया हुआ है। कलाई पर बँधी घड़ी देखते हुये नमस्कार किया।
"क्षमा चाहता हूँ ।कुछ जल्दी आ गया। "
"जी कोई बात नहीं। ये लीजिए और देखिये जो आप चाह रहे थे वह बदलाव ठीक हुआ?"
"वाहहहह,"कहते हुये मधुरम के चेहरे पर आश्चर्य उभर आया। 
पुस्तक फाइनल थी ।पाँच दिन में सारा काम हो गया। उधर मधुरम काव्या के बारे में सोचने.लगा। गाहे बगाहे आफिस आ जाता ।कोई न कोई बहाना तैयार रहता। चार पाँच माह में काव्या भी थोड़ा खुल गयी थी। 
"सुनो काव्या,आज मेरे साथ कैफे चलोगी?
"क्यों, कुछ खास बात ?"
हाँ यही समझ लो ।
आफिस के पास वाले कैफे में दोनों गये कॉफी के साथ सेंडविच का आर्डर देदिया।मधुकर उसे एकटक देखे जा रहा था।
लाज की हल्की सी लाली काव्या के चेहरे पर उभर आई।
क्या हुआ,ऐसे क्या देख रहे हो।"कुछ असहज हो गयी थी काव्या।
मैं शादी करना चाहता हूँ तुमसे ।करोगी?
"व्हाट..?"चोंक गयी काव्या। 
मधुरम् ,ये निर्णय मम्मी पापा करेंगे ,मैं नहीं।
ओके ,पर तुम्हें तो कोई एतराज नहीं।
जबाव में काव्या की लजीली पलकें झुक गयी थीं।
मधुकर घर आया। तो माँ ने सारा घर सर पर उठा लिया।
"नये जमाने के चोंचले हमें समझ न आते।और चढ़ाओ लड़की को सर पर ।पता न क्या क्या गुल खिलाती रही होगी आफिस और काम के बहाने। पहले ही मना किया था कि नौकरी की इज़ाजत मत दो। लो भुगतो अब। "
न जाने और क्या क्या कहती रहीं माँ ।काव्या समझ न सकी माँ का बर्ताव उसके लिए ऐसा क्यों हैं?
पापा ,भैया ने कहा वो सँभाल लेंगे माँ को चिंता करने की आवश्यकता नहीं। पर माँ उसे कोसती रहीं।
पापा मधुकर के घर होकर आये ,वो संतुष्ट थे। जात बिरादरी कुल गोत्र सब मिलता था।
उन्होंने हाँ करने से पहले काव्या से पूछा ।
काव्या ने सिर्फ एक जबाव दिया कि आप जो भी निर्णय करेंगे वो मुझे मंजूर होगा। आपके निर्णय के विरुद्ध न जाऊँगी।
अगर मैं इंकार कर दूँ ?
तो भी आप का निर्णय सर आँखों पर पापा। आप मेरे लिए गलत नहीं सोचेंगे।और आपका भरोसा मैं मरते दम तक न तोड़ूँगी।"
पापा ने मधुरम  से रिश्ता तय कर दिया ।
पर माँ दिन रात कोसती रहीं "आग लगे जमाने को ।लव मैरिज करने चली हैं महारानी। सारी शर्म बेच खाई है।"
वह अनसुना कर देती पर मधुरम को कोसती तो बुरा लगता।
ट्रिन ..ट्रिन ..ट्रिन
उस दिन सुबह सुबह ही फोन की घंटी घनघना उठी।
इतनी सुबह किसका फोन हो सकता है ?पापा ने पूछते हुये फोन देखा।मधुरम के पापा का था।
"नमस्कार समधी जी। सुबह सुबह फोन ..।सब कुछ ठीक तो है?"अंजानी आशंका से पूछा पापा ने ।
उधर से पता नहीं क्या कहा गया कि पापा हड़बड़ा गये ..
"अरे ,कब ,कैसे?ऐसा कैसे ?कहाँ हो जैसे शब्द काव्या के कान में पड़े ।
समधी शब्द सुन के काव्या की माँ का कोसना फिर चालु हो गया।
फोन रख कर पापा ने आँसू भरी आंखों से काव्या को देखा।
पर्स जेब में डाल बेटे को आवाज लगाई ।और बाप बेटे जल्दी घर से निकल गये। काव्या अंजानी आशंका से काँप गयी। दो घंटे बाद दोनों लौटे तो ऐसे जैसे सब कुछ लुट गया हो।
भाई ने काव्या को गले लगा कर सर पर हाथ फेरा और चला गया।
"पापा क्या हुआ ..।"काँपते गले से पूछा ।
"होगा क्या ,रिश्ता तोड़ दिया होगा। तू कुलच्छनी के लक्षण ही ऐसे हैं कुछ पता लग गया होगा।"
आगे कुछ और कहती कि .
"बस्स.,चुप करो। ले डूबी तेरी हाय और रोज रोज का कोसना मधुरम को।"पापा ने पहली बार इतना जोर से बोला 
काव्या के हाथ से चाय का प्याला छूट गया। जैसे जड़ हो गयी ।
बिजनेस ट्रिप से लौट रहा था ।रास्ते में गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। चूंकि रात बहुत हो चुकी थी तो कोई खबर न मिली न किसी को पता चला। दो घंटे बाद पुलिस की गश्ती जीप गुजरी तब उसके मोबाइल से फोन कर अस्पताल आने को कहा।लेकिन सब खत्म हो चुका था। पापा कहते कहते रो पड़े।
एक माह बाद शादी होना थी। और ....।
काव्या तो जैसे पत्थर बन गयी थी। पापा भाई ने उसे सँभाला।अभी दिन ही कितने हुये थे ।और काव्या कैसे भूल सकती थी मधुरम को ।उसने शादी न करने का फैसला कर लिया था। 
मधुरम की यादें और उसका अधूरा काम ही उसकी जिंदगी का आसरा थे अब।
माँ को कोसने का नया बहाना मिल गया था।



पाखी, मनोरमा जैन


 



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