बिरहन-संतोष शर्मा

अपनी फैक्ट्री में कार्य करने वाली लड़कियों और किसी शख्स के साथ गोरी सी उसकी पत्नी को राह चलते देखकर ईष्र्या करता तो कभी अपनी स्वयं की जिंदगी के विषय में सोच कर आहें भरता , काश ‌ ! ऐसी गोरी चिट्टी खूबसूरत लड़की मेरी जीवनसंगिनी बनती तो बात बनती !!
अखबार पत्रिका से लेकर टीवी और फिल्मी हीरोइनों एवं सोसाइटी की आम लड़कियों का गोरापन उसे बहुत आकर्षित करता , बचपन से उसका बस यही सपना था कि उसकी भी शादी किसी सुंदर  गौर वर्ण वाली कन्या से हो  । 
जब अम्मा जिंदा थी तो उनके चरण स्पर्श करने पर  वें आशीर्वाद देती थी  " ठाकुर जी करे हजारी उमर हो तेरी सुंदर सी बहू आवे " तब उसे विश्वास था कि बड़ों के आशीर्वाद में ताकत होती हैं ।परंतु यह भ्रम उस दिन टूटा जब उसका विवाह एक सामान्य व सांवली लड़की से हुआ।
 आज भी कभी  वह गौर वर्ण से उसकी तुलना करता तो बेचारी कसमसा कर चुप हो जाती । विवाह को 2 वर्ष हो चुके परंतु कभी उसने पत्नी को पत्नी होने का दर्जा नहीं दिया  , कभी भी यह सोचने की हिमाकत नहीं  की , कि उसके प्रति भी कोई जिम्मेदारी बनती है । वह क्या करती है कैसे रहती है इससे उसे कोई मतलब नहीं था।
वह तो बस सुबह का नाश्ता करता और तैयार होकर टिफिन लेकर चुपचाप चला जाता अपनी फैक्ट्री  , और जब शाम को लौटता तो चाय तैयार मिलती फिर ठीक समय पर रात का खाना  ... सो खाना खाया और सो जाता। यदि वह उससे कुछ पूछती तो चंद शब्दों में औपचारिकता पूरी कर पल्ला झाड़ लेता। कभी उसका नारी मन विरह पीड़ा से विवश होकर उसके करीब आने की कोशिश करती तो वह झुंझला कर उसे फटकार देता ,  देखो नंदनी  ! मैं काम से थका हारा आया हूं और तुम हो कि कुछ समझती ही नहीं  !! कम से कम चैन से सोने तो दिया करो । ऐसे में रसोई के एक कोने में जाकर दबी घुटी आवाज में रो रो कर मन को शांत करने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं रहता था ,  वह सोचती कि  " समझ मैं  नहीं रही  ! या वे  नासमझ बन रहे है !? प्रथम मिलन की रात को एक नजर देखने के बाद उसे यूं ही छोड़ कर वह कमरे से बाहर निकल आया था उसके बाद शायद ही उसने कभी नंदनी को नजर भर के देखा हो  ,‌ उसके मन में तो सिर्फ गौर वर्ण ही घर कर चुकी थी मानो गौर सुंदरता ही सब  कुछ है जीने के लिए ।
गांव में थी तब मां ने समझाया भी था   " ब्रजेश ! वह जैसी भी है पत्नी है तुम्हारी  ... क्या सांवली होने के कारण त्याग देगा उसे  अरे जिम्मेदारी है वह तुम्हारी  "  लेकिन ब्रजेश ने  बात ऐसे टाल दी मानो उसके कान में बिना शब्द के किसी ने फूंक मार दी हो और मां की जिद की वजह से वह बेमन से नंदनी को लेकर शहर आ गया । एक कमरा होने के बावजूद वहां दो अलग अलग बिस्तर अलग अलग दिशा की ओर लगते थे।
कभी-कभी बृजेश की नजर को किसी गोरी लड़की की ओर उठते देखती तो उसका अपना अधिकार डगमगाता सा नजर आता और वह कुढ़कर रह जाती आखिर है तो वह भी औरत ही ना । कभी घर पर अकेली बैठी वह मन ही मन स्वयं से घृणा करने लगती  " काश मैं मर क्यों नहीं जाती इतनी पीड़ा को सहकर विवाहित जीवन  , पति के करीब होते हुए भी उनके प्यार  उनके सामिप्य से कोसों दूर ? 
दो वर्ष का लंबा समय इतना संयम स्वयंको संभालना कितना कष्टदायक होता है नारी मन कितना आहत होता है यह तो सिर्फ व्यथित बिरहन नारी ही समझ सकती है ।
परंतु कहावत है ना कि समय के पास हर  मर्ज की दवा है और समय हर किसी से किसी ना किसी रूप में कोई ना कोई परीक्षा लेता ही है और  शायद यह धैर्य की परीक्षा ही थी बिरहनी नंदिनी के लिए सो वह भी इसी प्रतीक्षा में थी कि कभी ना कभी तो बृजेश की स्नेह दृष्टि उस पर अवश्य पड़ेगी  । समय का अविरल चक्र चलता रहा जिसमें बृजेश केवल ख्वाबों के संसार को यथार्थ में ढूंढता रहा और नंदिनी यथार्थ में मिल रहे दर्द को भविष्य की खुशी समझ सपने  संजोती रही ।
एक रात फैक्ट्री से वापस लौटते समय उसकी बाइक  तेज गति से आती ट्रक से टकराकर दूर जा छिटकी और वह घायल होकर सड़क पर फड़फड़ाने के बाद अचेत हो गया  , जब उसकी आंखें खुली तो अस्पताल के कमरे में स्वयं को टूटी-फूटी अवस्था में पाया नजरे घुमाई तो पास में नंदनी बैठी थी उसे होश में आया देख व दौड़ती हुई डॉक्टर को बुला ले आई उन डॉक्टरों के कथन अनुसार अब बृजेश खतरे से बाहर था।   खतरा शब्द सुनकर वह डॉक्टरों का मुंह ताकते अपने सिर के दर्द को आंखों से दबाकर प्रकट किया एक हाथ से जब इतने दुखते सिर को टटोला तो पूरा सिर पट्टियों से बंधा था उसकी जिज्ञासा शांत करते डॉक्टर ने जो सच बताया उसे सुनकर बृजेश का मन आत्मग्लानि से भर उठा ।
 डॉक्टर के कहे अनुसार उसे दुर्घटना के ठीक तीन दिन बाद होश आया था सड़क पर सिर के बल गिरने से उसके सिर पर जिस तरह से चोट आई थी उससे उसका बचना मुश्किल था । यदि उसे कोई जीवन दान दे सकता था तो वह था एक कुशल ब्रेन स्पेशलिस्ट और एक ब्रेन स्पेशलिस्ट का मतलब बड़ी रकम... मोटी फीस , महंगी दवाइयां और रोज के खर्च लेकिन नंदिनी ने हार नहीं मानी मायके से मिले सारे गहने कीमती वस्तुएं और अपनी जमा पूंजी सब लगा दिए दांव पर और इसका सुखद परिणाम के आज इतनी जानलेवा दुर्घटनाके बावजूद वह जिंदगी की सांसे ले रहा है।
अस्पताल में नंदनी की सही और समय पर देखभाल और डॉक्टरों द्वारा बताएं दिशा-निर्देशों से वह जल्द ही स्वस्थ हो गया और पैंतालीस दिन में ही उसे छुट्टी मिल गई अब उसे हर हफ्ते केवल चेकअप के लिए जाना होता था इस दौरान बृजेश ने देखा कि नंदनी को उसके द्वारा किए गए व्यवहार के प्रति कोई शिकायत नहीं थी जब वह बृजेश को अस्पताल ले जाती और  लाती उसे दवा देने से लेकर नहलाना धुलाना और खाना खिलाकर उसके आराम से सो जाने के बाद तक जागना ,  पूरी दिनचर्या में उसके चेहरे पर कोई घृणा या  शिकन तक की एक छोटी सी भी लकीर नहीं दिखाई दी अपने प्रति  ।
बृजेश का मन खिन्न हो गया उसे स्वयं से घृणा होने लगी नंदनी को उसके अधिकार से वंचित रखने पर । 
स्वस्थ होने के बाद उसे फैक्ट्री वापस अपने काम पर जाने की अनुमति भी मिल गई अब वह पुनः सुचारु रुप से अपने कार्य पर जाने लगा जब वह फैक्ट्री के लिए निकलता तो नंदिनी बजेश को सावधानी से गाड़ी चलाने की हिदायत अवश्य देती  कई बार उसने चाहा कि नंदनी से अपने किए और उसके दिल को ठेस पहुंचाने के लिए क्षमा मांग लें लेकिन पुरुष का स्वाभिमान उसका अहं उसे रोक देता  ।
आज बृजेश जब फैक्ट्री से लौटा तो नंदिनी चटाई पर सोई थी  वह बुदबुदाया  "  इस समय तो नंदनी कभी नहीं सोती  ! मेरे आने से पहले ही चाय  तैयार  रखती है" ।
उसने झुककर देखा तो दर्द निवारक बाम की झार  से वह समझ गया कि नंदिनी के सिर में दर्द है तो उसने जगाना उचित नहीं समझा परंतु अपने पास किसी के होने का आभास पाकर नंदनी हड़बड़ा कर जाग गई   "अरे आप  ! मैं अभी चाय बनाकर ......."  नहीं  " (उसने बात काट दी)  नंदनी इतना तो मैं कर ही सकता हूं और उसे आराम करने का इशारा कर स्वयं रसोईं में चला गया ।
जब वापस लौटा तो दो प्याली चाय थी उसके हाथ में एक प्याली चाय नंदनी को पकड़ाते हुए उससे कहा लो  चाय  ! जल्दी पी लो । नंदनी ब्रजेश के परिवर्तन को देख कुछ समझ ना सकी और उसे किसी अजनबी की तरह निहारने लगी  "  क्या सोच रही हो नंदिनी ?
 अं हां हूं   कुछ नहीं तो ।
 फिर चाय पियो आराम मिलेगा । नंदिनी आश्चर्य भरी दृष्टि उस पर डालते हुए पूछा "  जी आराम ?"
हां  ! तुम तो बताओगी नहीं  ,बाम के झार से मुझे पता चला सो .. । हाथ में चाय का प्याला थामें नंदनी सोचने लगी कि इन दो ढाई सालों में इनको मेरे  किसी भी दर्द का कोई एहसास नहीं  हुआ ! और आज यह जरा सा सिरदर्द !? अब तक ब्रजेश ने चाय पीकर प्याला नीचे भी रख दिया था और नंदिनी ,  उसकी चाय तो हाथों में ही ठंडी हो चुकी थी उसके मन में मच रहे उथल पुथल को बृजेश आज स्पष्ट देख सुन पा रहा था हाथों में ही ठंडी हो चुकी चाय के प्याले को लेकर ब्रजेश ने नीचे रख दिया और उसका हाथ अपने हाथों में लेकर पूछा ।
" नंदिनी !  ( लेकिन नंदनी तो उसे अपलक निहार रही थी क्योंकि उसका मन तो अनेक प्रश्न लिए तूफानों से लड़ रहा था )  मैं जानता हूं !!  कि जिस प्रकार का रवैया मैंने अपनाया है और अपने व्यवहार से तुम्हें ठेस पहुंचाया है उस दर्द के सामने तो ऐसे सौं सिर दर्द न्योछावर ...... वह चुप हो गया अपने अंदर उठते भावुकता के हिलोर को वह रोक नहीं पा रहा था सो  कुछ देर रुक कर फिर बोला  "  क्या मुझे इतना भी हक नहीं कि अब मैं तुम्हारे हर दर्द का हमदर्द बन कर उसे महसूस कर सकूं  !? उसे अव्वाक और खामोश देख ब्रजेश ने अपना हाथ उसके हाथों से आजाद करता हुआ बोला  , मुझे मालूम है नंदनी यह शब्द मेरी जुबान से अच्छे नहीं लग रहे हैं फिर भी मुझे तुम्हारी दी हर सजा मंजूर है अगर तुम । " ब ..स " 
और इसके आगे सुनने ‌से पहले ही नंदिनी अपनी हथेलियों में मुंह छुपा कर फफक पड़ी। ब्रजेश का हृदय द्रवित हो उठा उसने नंदिनी को सीने से लगा लिया ।
" ना नंदिनी ना  ! एक आंसू भी मत बहाना  !! वर्ना मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा ।
दुनिया का सबसे बड़ा दर्द दिया है मैंने तुम्हें अब आंसू नहीं देना चाहता बृजेश ने अपने दोनों हाथों से नंदिनी के चेहरे को किसी कमल के पुष्प की भांति भर लिया तो नजर चेहरे पर ही ठहर गई , नंदनी को देखकर बृजेश का पुरुषार्थ उसे  थू थू  कर  धिक्कारने लगा  ,  रंग रूप की सुंदरता के पीछे भागते भागते उसने बहुत कुछ अपने ही हाथों से खो दिया था।
सचमुच  ! खूबसूरती तो नंदिनी के कर्म निष्ठा में थी  सांवली .. किंतु नैन नक्श पूरी तरह से तराशा हुआ   बड़ी बड़ी आंखें  , सूती नाक  ,सुराही दार गर्दन गोल चेहरा ,  लंबे बाल  ... बृजेश  की नजरें आत्मग्लानि  से झुक गई ।
नंदनी  ! एक विवाहिता को बिरहन बनाने वाला मैं तुम्हारा गुनहगार हूं हो सके तो मुझे माफ कर देना  ।
 "बस  ... अब और कुछ भी मत कहिएगा।
 नंदिनी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे  , लगता था बुरे दिनों का सारा दर्द पिघल कर आज ही बह जाएगा  
सिसकती हुई नंदिनी बृजेश के सीने से लगकर उसके दिल की गहराइयों में समाती चली गई जहां बृजेश और नंदिनी को एक दूसरे की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी।


 



संतोष शर्मा शान 
हाथरस



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