चटखारा-पाखी

लाकडाउन क्या हुआ नामुराद खुली हवा में साँस लेना भी मुश्किल हो गया।अभी कल की ही तो बात है ,पतिदेव से कहा ,सुनो जी ,महीना भर हो गया खुला आसमान देखे। रसोई से कमरा ,कमरे से रसोई। देखो न कितनी अच्छी हवा चल रही ,बादल घिर रहे ।चलो छत पर चलते हैं।"
अजी जनाब ,ऐसा मुँह बन गया जैसे चाँद तारे माँग लिये हों।
"अरे रहन दे ।बालकनी में खडी हो जा पाँच मिनिट के लिए। और खाले हवा।"अब बोलो ये भी कोई बात हुई? सोशल डिस्टेंस तो ठीक पर घर में ही छत डिस्टेंस?
पतंग उड़ रही थी मन हुआ वो भी जोर जोर से चिल्लाये "वोक्काटा।"
सुनो न ,कितनी पतंग उड रही हैं ।सभी लोग अपनी अपनी छत पर हैं।"
फटाक से सवाल आया ,तो तुम्हेंका परेशानी?"
वैसे आज ज्यादा जिद कर रही हो ,कछु गडबड तो ना?"
लो जी , आग लग गयी मन में ।
"जा उमर में का गडबड होयेगी।"
पर मन उछल के पहुँच गया मोहल्ले के आशिकों पर।
लाकडाउन में मुख दर्शन तो क्या दूर दर्शन भी संभव न हो पा रहे प्रेमियों को। मंदिर का भी बहाना था तो वो भी बंद ।कालेज आने जाने के रास्ते वो भी बंद।घर की खिड़की झरोखे झांकना बंद ,क्यों कि बाप भैया जो घर पर हैं।मोबाइल पर भी लगाम।
क्या हाल हो रहा होगा प्रेमियों का ।जैसे तैसे हिम्मत करके लाकडाउन तोड़ के बहाने से प्रेमिका की गली के दो चार चक्कर लगा लेते हैं।पर वहाँ तैनात पुलिस डंडे बजा कर सारी इज्जत उतार देती है।कभी मुर्गा कभी उठक बैठक।
उफ्फ ।बेचारे प्रेमी ।उनकी पीड़ा को कोई भी न समझता। बेरहम जमाना तो पहले ही था ऊपर से ये नामुराद कोरोना। हे ऊपर वाले ,और कुछ न तो इन प्रेमियों के बारे में तो कुछ सोचो।
अभी इन ख्यालों में ही उलझी हुई थी कि पतिदेव बोले ,"किसकी याद आ गयी ?बड़ी सोच में डूबी हो।"
"झटके से निकल गया प्रेमी के सोच में।"
बाकी मत पूछना ,फिर कौनसी रामायण ,महाभारत छिड़ी।
हाँ पड़ोसियों ने अपने छज्जों पर आकर वाक्युद्ध ,बर्तन खनकने के स्वर का चटखारा लिया। अमाँ क्या तुम भी। जहाँ चार बर्तन होते हैं खटकते ही हैं।


मनोरमा जैन



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