दूर भागता हूँ अपने ही उसूलों से.
कितनी बार छला गया फूलों से.
कोई ख़बर आती नहीं यार की,
रोज़ाना ही मिलता हूँ रसूलों^ से.
संकरी राह पर अनवरत चला,
मुझे बचना ही नहीं आया शूलों से.
मानकर दोस्त सांप को दूध पिलाया,
मैं सीख नहीं पाया अपनी भूलों से.
"उड़ता"दूर रहता हूँ सकूलों^ से, (एक कुल के )
अब आती नहीं खुश्बू बकूलों^ से.
स्वरचित मौलिक रचना.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )
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