एक दिन आपका में अमिता मराठे की कहानी
पिकनिक से लौटते ही मैंने दादाजी के कमरे से बड़बड़ाने की आवाज सुनी।कमरे में झांक कर देखा दादाजी पलंग पर सोये थे शायद अपनी सुखद स्मृतियों से खेलने में मस्त थे।
दादाजी एक आम इन्सान थे।बैंक मे सक्रिय मैनेजर के रूप मे जाने जाते थे ।जवानी का और शरीर सौष्ठव का नशा इतना था कि हर किसी को अपने बल्ले ठोककर कहते थे है ऐसे बल्ले आपके सभी ठहका लगाकर हस पडते थे।
ये वेट लिफ्टर थे।कबड्डी के जाने माने खिलाड़ी थे।साठी तक दादाजी अच्छे प्रशिक्षक भी थे।दादाजी मोहल्ले से गुजरते लोग उन्हें दूर तक जाते देखते रहते थे।पहलवानी चाल अब पलंग पर ही कबड्डी कबड्डी कर रही थी।
मैंने दादाजी के चरण स्पर्श किये और पिकनिक के फोटो दिखाने लगी।अरे संजू बेटी मेरी याशिका के फोटो देख दंग हो जायेगी। तेरा पापा कहता था आजकल छोटे से बूढ़े फोटोग्राफर बन गये है।कहते हसने लगे थे।हमारा जमाना ही मजे का था।जब तक याशिका कैमरा हाथ मे रहा शहरवासियों के चेहरे कैसे भी हो साफ मुखौटे खिंच लेता था।उस समय शहर में गिने चुने फोटोग्राफर थे ।गोपालदास का स्टुडियो ख्याति प्राप्त था वह मेरा अच्छा दोस्त था ।बस उससे मिलजुलकर ये काम शौक के बतौर पूरा कर लेता था।नौकरी भी ठाट से की है समझी संजू।
संजू ने कहा हा दादाजी क्या कहे आपकी किन्तु आपका कैमरा तो अटाले मे पडा है।ऐसा मत कहो ये मेरी जिंदगी की रौनक थी।रात तक शादी ब्याह के फोटो निकालता था।अब नई तकनीकी से तैयार कैमरे व मोबाइल आ गये है तो क्या हुआ ।जमाने को पलटने मे देरी कितनी लगती है ।फोटोग्राफी का शौक तो खुद को कष्ट देकर भी पूरा किया था पूछ लो अपनी दादी से।कैसे सजकर खड़ी रहती थी।उस समय भी सेल्फी ली जाती थी।हमने भी सेल्फी का मजा लिया है।
सच मेरे दादाजी की दिनचर्या मे कॅमेरा एक दोस्त था।उसकी साफ सफाई रोज के कामो मे शामिल थी।सदा बेग साथ मे रखते थे।किसी के भी सामने याशिका प्रेम वर्णन शुरू करते समय बेपरवाह बन जाते थे।
घर आने के बाद कैमरा सही सलामत खूंटी पर टांगा जाता था ता कि कोई हाथ न लगाये।घर मे करिने से खूटियाँ लगी थी।घर के सामने से गुजरने वाले हर शख्स को उत्सुकता होती वह झांककर देख लेता था ।दादाजी एल्बम व फोटो दिखाकर तारीफ बटोरते थे।इसी मे दादाजीकी खुशी समाई थी।जिससे दादा जी व मेहमानो का सीना गर्व से फूल जाता था।यहा तक घर मे आने वाला पोस्टमैन कामवाली बाई भी दादाजी के मस्तमौला स्वभाव से परिचित थे।उनकी तारीफ कर अपने फोटो भी खिंचवा लेते थे। मेरे दिखाये फोटो मे एक रस्साकशी का फोटो था उसे दिखाते हुए कहा इसमे मै जीत गयी थी बताओ तो ये कैसा निकला है।दादाजी कुछ सम्हल कर बोले बेटी जिन्दगी भी ऐसी रस्सा खींच का खेल है जो उसमे भी खुश हुआ वह जीत गया समझो कहते मुस्कराने लगे।बताओ ऐसी मजे की जिन्दगी कौन भूल सकता है ।"आम के आम गुठली के दाम"ऐसा था दादाजी का कैमरा।
अमिता मराठे
इन्दौर
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