ढ़लता सूरज-रीता

ढलता है सूरज एक नयी आश के साथ
कल फिर आएगा एक नयी रोशनी के साथ
रुक ना जाना पथिक थक कर बीच राह में
मिलती है मंज़िलें बड़ी
शिद्दत के साथ
डरा नही करते दरख्त
पतझडो से
,क्योकि उन्हें यकी है
फिर खिलेंगे वो 
मधुमास के साथ
तम को चीरती चिंगारी
रोशन कर देती है फिर
खिली धूप के साथ
,पर हां यह सत्य है
देनी पड़ती है अग्निपरीक्षा


रिश्तो की रिश्तो के साथ
कौन जी पाया है ताउम्र
सुख औ चैन के साथ
चलती रहेगी ज़िन्दगी युही ए रीता 
रोज़ एक नयी
आश के साथ


डॉ रीता शर्मा  विदिशा



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