दिल ही तो है-अंजु

 


सत्य निष्ठा, कर्तव्य भावना, प्रेम ,स्नेह ,सहानुभूति, करुणा, दया ,ममता आदि शब्द ऐसे हैं जो दिल से ही निभाए जाते हैं यह दिल ही तो है जो आपको यह घटना सुनाने पर विवश कर रहा है ।यह बात पिछले साल 19-4- 2019 की है इसी दिन मेरे पिताजी को बाएं अंग में पैरालिसिस का अटैक प्रातः 4:00 बजे पड़ा था ।मेरे पिताजी की उम्र 85वर्ष की है उस समय वह ऊपर की मंजिल में अचेत अवस्था में भैया -भैया पुकार रहे थे ।उसे पिताजी की आवाज सुनाई पड़ी दौड़कर उनके पास पहुंचा और तत्काल मुझेभी सूचित किया मैं भी वहां पहुंच गई ।भोर की बेला ,गली में मकान किसी तरह हिम्मत जुटाकर भाई पिताजी को गोदी में लादकर नीचे लाया और विचार- विमर्श कर पास के ही एक परचितडॉक्टर के पास ले गया उन्होंने घर में ही अपना हॉस्पिटल खोला हुआ है। हम लोग ईश्वर का स्मरण करते हुए समय से पहुंच गए।सूचना मिलने परअविलम्ब डॉक्टर साहब नीचे आये, बहुत ही सज्जन सहृदय व्यक्ति हैं उन्होंने तुरन्त चिकित्सा प्रारम्भ की, बताया 48 घंटे बाद ही कुछ कह सकते हैं लेकिन ईश्वर की कृपा से धीरे-धीरे पिताजी ठीक होने लगे । इस कार्य मे मेरे पति और पुत्र का योगदान सराहनीय रहा।उन्हें 10 दिन बाद घर लाया गया और फिजियोथैरेपिस्ट के द्वारा उनका व्यायाम होने लगा। महसूस होने लगा कि अब खड़े हो जाएंगे लेकिन इंसान जिस कमरे में अपना जीवन व्यतीत करता है,उसी मे उसकी आत्मा बसी होती है,उससे मोह जुड़ा रहता है।
मेरे पिताजी भी रात -दिन रट लगाये रहते कि मुझे ऊपर कमरे में जाना है कि जिद ने उन्हें न जाने कौन सी ताकत दी कि वह अपने कमरे में घिसटते, किसी तरह न जाने कैसे सीढ़ी चढ़ते ऊपरपहुंच गए जबकि उनके हाथ-पैर बंधे होते थे लेकिन अचानक उनके शरीर में इतनी ताकत कहां से आई सुबह का समय था ऊपर पहुंचकर वह फिर से भैया -भैया पुकारने लगे। भैया ने पहले नीचे उनके बिस्तर पर देखा लेकिन वहां नहीं थे, भागकर ऊपर देखने गया ।देखा घबराए हुए थे पिताजी धड़कन तेज हो गई थी ,मुंह से झाग फेंक दिया था।सारा घर फिर से परेशानी मे आ गया।इत्तेफाक सेकिसी कार्य वश मैं वाराणसी गई थी ।भाई ने फोन करके बताया ।फीजियोथेरपिस्ट की मदद से हिम्मत जुटा कर उन्हें उसने पुनःएडमिट कराया ।चार-पांच दिन हॉस्पिटल मे रहे ।डॉक्टर की सलाह से उन्हें घर ले आया क्योंकि भाई अकेला है। उसका दो बच्चों का परिवार है ।सभी को देखना है। मैं उस भाई को दिल से आशीर्वाद देती हूं जिसकी सेवा के बलबूते मेरे पिताजी आज भी जीवित हैं ।19-4 - 2020 आने वाला है और मेरे पिताजी को जूझते हुए सालभर पूरे हो रहे हैं ।उनका सारा कार्य बेड पर ही
होता है।भाई उठाता -बैठाता, सेवा करता रहता है ।सुबह से शाम तक उन्हीं में तल्लीन रहता है। मां की भी देखभाल करता है ।नौकरी भी करता है। लेकिन सामाजिकता एकदम सीमित है। अपने सारे कर्तव्यों को बखूबी निभा रहा है। घर को हॉस्पिटल बना रखा है ।पिताजी को खुश रखने के लिए वह नाचता है ,हंसता है ,गाली भी खाता है लेकिन माता-पिता की सेवा से बढ़कर कोई सेवा नहीं उस फर्ज को जिसतरह वह निभा रहा है वह काबिले तारीफ है दिल ही तो है ।


जो उसे ताकत दे कर सब कुछ करा रहा है ।श्रवण कुमार की तरह उसने तीर्थाटन तो नहीं कराया लेकिन इस कलियुग में मेरे भाई जैसा पुत्र होना भी दुर्लभ है ।एक समय ऐसा भी आया कि गाय दान और जिस -जिस ने जो बताया सब कुछ दान करवा दिया।विधाता के आगे किसी का वश नही चलता ।कहते हैं सांसो की माला पर किसी का वश नहीं होता ।साल भर से नाक की नली द्वारा ही उनके शरीर में भोजन पीस कर फल का रस दूध जाता है ।अनगिनत बार उन्होंने अपनी नली निकाल भी दी है ।क्या -क्या बताएं ?यह मेरे भाई की हिम्मत का ही प्रतिफल है।मेरे पिता द्वारा दिए गए नाम प्रियदर्शी को उसने सार्थक कर दिया ।मैं अपने छोटे भाई को दिल से नमन करती हूं जिसने हम सभी के मान को बढ़ाया है ।धन्य है धर्म परायण पिता का ऐसा कर्तव्यनिष्ठ पुत्र ।ये दिल ही तो हैजिसने मुझे आपके समक्ष यह बात कहने का साहस दिया।ईश्वर मेरे पिता को अच्छा स्वास्थ्य दे और मेरा भाई चिरंजीवीऔर स्वस्थ रहे।इस लाॅकडाउन मे उसका परिवार देहरादून मे फंसा है ।मै एक शहर मे रहकर भी नही जा पा रही हूॅ।माॅ और भाई ही सब कुछ सभांले है। परमपिता परमेश्वर की कृपा उन पर बनी रहे।



अंजू पुरवार 
चैतन्यमार्ग ,मीरापुर, प्रयागराज।



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