दिल ही तो है-ज्योति

रोहित अपने घर-परिवार से दूर एक बड़े शहर में नौकरी करता था,कभी एक महीने से कभी दो महीने से घर आता था।इस बार दो महीने होने को थे लेकिन घर नहीं जा पाया था,सोच रहा था जल्दी ही काम खत्म करके एक दो दिन में निकल जाऊँगा।
 अचानक देश में कोरोना जैसी महामारी फैलने से इक्कीस दिन के लॉकडाउन की घोषणा हो गयी। 
जब रोहित को पता चला वह निराश हो गया,मन में अनेक विचार आने लगे,लेकिन उसके पास वहाँ रुकने के अतिरिक्त और कोई विकल्प ही नहीं था।
"दो महीने निकले हैं तो इक्कीस दिन भी निकल जाएंगे फिर घर पर बात तो रोज करता ही हूँ"।
रोहित अपने आप को समझाने लगा,कहीं ना कहीं उसे डर भी था अगर किसी तरह निकल भी गया और संक्रमण का शिकार हो गया तो सबको संकट में डाल दूंगा, इससे अच्छा मेरा यहाँ रहना ही ठीक है।पत्नी को फ़ोन लगाया "सुनो हेमा तुम संभाल लेना सब, मैं नहीं आ सकता अभी"।
हेमा को भी चिंता हो रही थी पर उसने सोचा अगर मैं कमजोर पड़ गयी तो इनका अकेले रहना मुश्किल हो जाएगा और उसने बहुत विनम्र होकर कहा "कोई बात नहीं आप अपना ध्यान रखिये बस, इधर की चिंता मत करिये।
देखिये ना भगवान राम और  माँ सीता ने भी एक राक्षस के कारण विरह सहा था, तो हम तो साधारण इंसान हैं।
हेमा की बात सुनकर रोहित को अपना ख्याल आया, रामायण का ख्याल आया, अपनी पत्नी पर गर्व हुआ आज इतनी मुश्किल और कठिन परिस्थितियों में भी कितनी सरलता से उसने कोरोना को रावण की संज्ञा देकर अपने पति को राम समान बना दिया था...


 


ज्योति शर्मा जयपुर



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