रात्रि के ग्यारह बजकर लगभग चालीस मिनट होने ही वाले थे कि आँगन के मुख्य गेट पर कुछ आहट सुनाई दी।कुछ देर की शांति के बाद फिर कुछ आहट हुई। चारों ओर सन्नाटा पसरा होने के कारण आवाज़ साफ सुनाई देने लगी। मैं सुबह की ऑन लाइन क्लास के लिए कुछ प्रश्नों की तैयारी में व्यस्त भले ही थी लेकिन पंजों से गेट पर होते प्रहार और कराहने की आवाज़ ने मुझे उठने पर मज़बूर कर ही दिया।
रोज की तरह नियत समय पर गेट के बाहर गली के कुत्तों को खाना मैं दे आई थी लेकिन आज उस समय सफ़ेद भोली (कुतिया )दिखाई नहीं दी थी। न जाने आज कहाँ रह गई। हो सकता है आज कहीं और भोजन मिल गया होगा ।यही सोचते हुए मैं फर्स्ट फ़्लोर पर वापस आने के बाद भूल गई। पंजों से होते प्रहार के साथ- साथ अब हल्की कराहने की आवाज़ भी आने लगी।
थोड़ी सी घबराहट के साथ ही मैं नीचे उतरी तो देखती हूँ भोली अपने पंजों से गेट को खटखटाने की कोशिश कर रही है।साथ ही करुण आवाज़ भी निकाल रही है ।मानो कह रही हो" माँ आज मैं भूखी ही रह गई हूँ।"नजदीक जाकर बिना गेट खोले ही मैंने उसे पूछा "आज खाने के समय पर तुम कहाँ रह गई थी।"
मेरी तऱफ प्यार भरी निगाहों से देखते हुए उसने ऊँह ऊँह की आवाज़ निकाली। मैं समझ गई कि वह भूखी है , खाना उसे कहीं मिला नहीं है। उसेआश्वस्त करते हुए मैंने कहा कि वह गेट पर इंतज़ार करे जब तक उसके लिए कुछ खाने की व्यवस्था होती है। जल्दी से उसके लिए खाने की व्यवस्था कर लगभग पन्द्रह मिनट बाद नीचे पहुँची, तो भोली टकटकी लगाए गेट के अन्दर ही देख रही थी। उसे खाना देते हुए हल्की सी डाँट भी लगाई कि देखो तुमने मुझे ज़रूरी काम से उठा दिया।समय पर आगई होती तो दुबारा मेहनत नहीं करनी पड़ती। खाते खाते ही उसने ऊँह ऊँह करते हुए अपनी सफाई पेश की मानो कह रही हो,क्या करूँ मैं भी तो ज़रूरी काम कर रही थी। सुबह उठ कर पता चला कि भोली ने शाम को ही चार बच्चों को जन्म दिया है।
अब समझ में आया कि वह अपनी भाषा में देर से आने का कारण मुझे बता रही थी कि उस समय वह अपनी भूख से अधिक अपने नवजात पिल्लों की भूख मिटा रही थी।सच !ये दिल ही तो है तो बेज़ुबानों की भावनाओं को भी शब्द बन समझा देता है।
माधुरी भट्ट पटना
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