दिल ही तो है-नीता


जिस दिन मोहल्ले में सोना की आवाज ना आए तो सभी पूछने लगते थे कि सोना दिखी क्या अरे क्या हुआ कहीं बीमार तो नहीं पड़ गई पूरे मोहल्ले की लाडली जो थीसोना के मां-बाप सोना के ही कारण जाने जाते थे वह बहुत ही दयालु किस्म की थी 11 साल की सोना ने पूरे मोहल्ले में नाक में दम कर रखी थी सारे बच्चों की दादी अम्मा और जो थी लेकिन मोहल्ले में चंद्रेश के ऊपर उसका जोर ना चलता वह बहुत ही तेज स्वभाव का था तब भी वह चांदी कहकर उसे चढ़ा कर चली जाती थीचंद्रेश जितना तेज स्वभाव का था अंदर से उतना ही दयालु किस्म का था1 दिन उसकी टीम में चंद्रेश खेलने नहीं आया तो सोना बड़ी परेशान हो गईसारी टीम के साथ में चंद्रेश के घर पहुंच गई और चांदी कह कर बुलाया और चिल्लाती हुई बोली और चांदी उठ जा तुझे क्या हो गया है तभी एक ने बोला इसे तो बहुत तेज बुखार है सोना ने छूकर देखा और मजाक के अंदाज में बोली अरे चांदी गरम भी होती है चंद्रेश ने उसे घूर कर देखा अगले ही पल सुनाओ बड़ी दया भाव से उसके सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रखने लगी और चिंतित स्वभाव से बोली तुझे अपना ख्याल रखना नहीं आता अब से अब से मैं तेरा रोज ख्याल रखूंगी इतने बुखार में तो तू उठ भी नहीं पाएगा और रोज का रूटीन बन गया रोज आती लेकिन चंद्रेश को पसंद ना आता कि वह से छुए भी और भाई जोर से चिल्लाया क्यों आ जाती है रोज-रोज तुझे परेशान करने सोना एकदम खड़ी हो जाती है उसे सबके सामने डांट खाना अच्छा नहीं लगा और वह गुस्से में वहां से चली जाती है अगले दिन आने का मन कर तो रहा था पर वह नहीं गई चंद्रेश को भी अपनी गलती का एहसास हुआ सोना ने खेलना ही बंद कर दिया चंद्रेश को अनजाने में ही उसकी कमी महसूस होने लगी चंद्रेश ठीक होते ही उसके घर गया खेलते हुए उसने कहा सभी को तेरे बिना बहुत बुरा लगता था वह बोली और तुझे चल अब दोस्ती करते हैं मैं सॉरी बोल रहा हूं और दोनों का बाल मन फिर से खेल में रम गया सोना बोली अब तू ने डांटा तो मैं फिर कभी नहीं आऊंगी चंद्रेश ने कहा ओके बाबा अब फिर कभी नहीं डांटूगा। दोनों साथ में स्कूल जाते खेलते कूदते बड़े हो गए सावन के झूले आते ही दोनों साथ में झूलने जाते और सोनू को झूले में डर लगता तो है चंद्रेश को कस कर पकड़ लेती इस तरह दिन बीते गए और दोनों ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा पर एक दूसरे के लिए दिल में पर वाह के सिवा कुछ भी नहीं था सोना अब 17 साल पूरे कर चुकी थी और 18 साल लगते ही सोना की शादी हो जाती है और वह चंद्रेश को चिढ़ाते हुए बोली चांदी तू भी शादी कर ले चंद्रेश बोला पहले तेरी तो करा दूं अभी तक दोनों के दिलों में प्यार नाम का शब्द ही नहीं था सोना शादी करके चली जाती है इधर चंदेश की भी अच्छे खासे परिवार में शादी हो जाती है चंद्रेश की पत्नी बहुत सारा दहेज लेकर आती है और बला की खूबसूरत थी चंद्रेश अच्छा खासा नामी वकील था चंद्रेश की पत्नी को अपने दहेज पर बहुत गुमान था और खूबसूरती पर भी। दोनों के विचार ना मिलने पर चंद्रेश उससे तलाक ले लेता हैदेखते ही देखते मां-बाप की स्वर्गवासी हो जाते हैं इस दुनिया में अकेला बचता है बचपन की सारी यादें उसे परेशान करती हैं अचानक ही वह सोना के घर जाता है और पूछता है सोना कब से नहीं आई सोना की मां बोली बेटा वह बहुत कष्ट में है शादी के कुछ ही दिन बाद उसके पति का स्वर्गवास हो गया चंद्रेश सुनकर भौचक्का रह जाता है और तुरंत ही अपने घर की ओर कदम बढ़ा लेता है उसका दिल सोना से मिलने को बहुत करता पर पर वह मन मसोसकर रह जाता शादी के बाद पहला सावन आते ही सोना अपने मायके आती है चंद्रेश की निगाहें उसके घर पर लगी रहती थी सोना को भी अंदर ही अंदर जैसे कुछ खटकता सा रहता था यहां आने पर उसकी बेचैनी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि उसे क्या चाहिए और चंद्रेश के कदम सोना के घर की तरफ बढ़ने लगते हैं और भाई आवाज देते हुए कहता है अरे सुनो भाई सुनो 50 के ऊपर पहुंच गया है अंदर से सोना निकल कर आई सफेद साड़ी में उसे देख चंद्रेश की आंखें फटी की फटी रह जाती है वे उसे हंसाने के प्रयास में फिर कहता है सोना 50 के ऊपर पहुंच गया है कहते हुए यह तुझे क्या हो गया तूने चांदी का वेश धारण क्यों किया है और फूट कर रोने लगता है और दोनों एक दूसरे का खालीपन महसूस करते हैं सावन सावन का महीना होने के कारण दोनों को अपनी पुरानी बातें याद आती है चंद्रेश बहुत कुछ कहना चाहता है पर वह देख चुपचाप अपने घर चला जाता है। यूं ही दोनों एक दूसरे को देखने के बहाने ढूंढते रहते उन्हें अब महसूस होने लगा था कि शायद एक दूसरे की परवाह ही हमारा प्यार है दिल ही दिल में दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे कुछ ही दिनों में दोनों शादी कर लेते हैं और कहते हैं दिल ही तो है हमारी मंजिल।  



नीता चतुर्वेदी विदिशा मध्य प्रदेश



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