दिल ही तो है-प्रतिभा

  नई - नवेली दुल्हन को छोड़ मनीष दिल्ली चला तो गया, मगर उसका मन किसी भी काम में नहीं लगता ।मन-मंदिर में बसी प्रेयसी की मनोहर छवि को वह अंतर्रात्मा से निहारते रहता । उसके संगी-साथी इस बदले हुए व्यवहार को देख  काफी परिहास करते ।हँसते-हँसते कह पड़ते -' अरे , चला जा यार ।यहाँ बैठे-बैठे गोबर में घी सुखाने से क्या फायदा ?' 
           मगर  मनीष करे तो क्या करे !इज्जत का सवाल था ।जाते ही पत्नी सवाल करेगी तो क्या जवाब दूँगा । शादी होते ही शहर छोड़ देना उचित नहीं । कुछ समय तो घर से दूर रहना ही होगा , अन्यथा सच्चाई खुल जायेगी ।
             रोहण ने छेड़ते हुए कहा _''  अरे , क्या सोचते हो  मनीष ! लगता है दिल अपना भाभी के पास ही छोड़ आए हो ।' मैं क्या करूँ रोहण , झूठ की बुनियाद पर कबतक नौकरी का झांसा देते रहूँगा ।मनीष ने रुदन स्वर में कहा ।
              अरे यार ! क्यों इतनी चिंता करता है। पति-पत्नी का संबंध विश्वास पर टिका होता है। परस्पर प्रेम इस बंधन को सुदृढ़ बनाता है। वैसे भी औरत का ह्दय बहुत कोमल होता है।वह पति का सच्चा प्यार पाकर सबकुछ भूल जाती है।एक झूठ तुम्हारे लिए बहुत बड़ी सबक है । दहेज के लोभी परिणाम नहीं सोचते ।रोहण ने तीखे स्वर में कहा।
     ' अब क्या करें , मित्र मेरी सहायता करो।' उसी बीच कोरोना जैसी महामारी की खबर आती है। मनीष को  रोहण ने एक उपाय बताया _जा , इसी बहाने चला जा।कह देना -अब तुम्हारे लिए यहीं रहूँगा ।जानम ! दिल ही तो है। 


 डॉ .प्रतिभा कुमारी पराशर
  हाजीपुर बिहार



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ