अगर विषय के बारे में कहां जाए तो सुनने में जितना सरल है ये विषय उतना ही कठिन है मेरे लिए शब्दों में उतारना।
मेरा दिल तो बचपन से ही उस नटखट सांवरे ने चुरा लिया है।सारी दुनिया उसे भगवान कहती है और वो कान्हा तो मेरा सखा,मेरा मन का मीत,मेरा प्रियतम,मेरा गुरु है।बहुत वर्षों से मेरा दिल और आंखे वृंदावन की गलियों में उस बांके बिहारी से मिलने को बेचैन थी।और अगस्त 2018 श्रावण की दोज को हमारा सपरिवार वहां जाना हुआ।मैंने सुना था कि बांके बिहारी से प्रेम करने वाले उनसे नजर नहीं मिला पाते है। पर मै तो ठान कर है गई थी कि मेरे सांवरे से नजर मिलाऊंगी ही कौन रोकेगा मुझे।आखिर दिल ही तो है और सब कहते है मेरा दिल तो अभी भी बच्चो जैसा ही है। हम गोवर्धन पहुंचे,वहां से दान घाटी के मंदिर गए।होटल में रुके और रात का खाना लिया और कुछ देर आराम करने के बाद निकल पड़े 7 कोस की परिक्रमा के लिए....बहुत सालों के बाद परिक्रमा की थी तो परिक्रमा में ही 7 घंटे लग गए। पर मेरा दिल तो वृंदावन की गलियों में अटका था ना कि कब सुबह होगी कब वृंदावन जाएंगे।
आखिर दिल ही तो है कैसे समझा सकते है उसे?सुबह 5 बजे के लगभग होटल में वापस आ गए और पूजा,स्नान करने के बाद वृंदावन के लिए अपनी गाड़ी से रवाना हो गए।हमने सोचा था सबसे अंत में बांके बिहारी के दर्शन करेंगे।तो वृंदावन के रास्ते भर के सारे मंदिरों के दर्शन किए और बांके बिहारी के दर्शन के लिए गाड़ी को पार्क किया।फिर पैदल निकल पड़े बांके बिहारी से मिलने के लिए,दिल पागलों की भांति बैचैन हो रहा था जैसे कोई अपने प्रियतम से पहली मुलाकात को जा रहा हो,दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी,ये भी सुना था सावन कि तीज को तो बांके बिहारी मंदिर के आंगन मै झूले में विराजते है।हम बांके बिहारी के मंदिर के बाहर ही लाइन में खड़े थे और कान्हा को मन ही मन बोल दिया,
आ गई हूं प्यारे तुझसे नैना मिलाने को।अब बताओ कैसे रोकोगे मुझे?
ये क्या मेरी कान्हा से बात ख़तम ही नहीं हुई और एक बंदर कहीं से आकर मेरे कंधे पर बैठकर मेरा चश्मा उतारकर ले गया।मेरी दूर की नजर कमजोर है,इसके बाद सन्न रह गई मै तो,कुछ देर के लिए कुछ सूझ ही नहीं रहा था,मुंह से शब्द भी नहीं निकल रहे थे रहे थे,मेरे जेठजी किसी के कहने फ्रूटी लेकर बंदर के पीछे भी गए पर तब तक उसने चश्मे के टुकड़े टुकड़े कर दिए।उसने चश्मे के नहीं मेरे दिल के टुकड़े किए थे
ये क्या किया कान्हा।मुंह से यही निकला बस और आंखो से अश्रु धारा बह निकली।
मंदिर के अंदर गए,बिना चश्मे के कान्हा की अनुभूति हुई पर नज़रे नहीं मिली। मन उदास था और बस कान्हा से ये ही कहा कि तुझसे शर्त लगा ली थी, पर क्या करू सांवरे,मेरे बस में कहां आखिर दिल ही तो है।
प्रियंका गौड़ राजस्थान
0 टिप्पणियाँ