रेस्टोरेंट में प्रवेश करते ही विशाखा की निगाहें उस अजनबी की पीठ से टकराई तो उसे लगा जैसे उसके शरीर को बिजली के नंगे तार ने छू लिया हो उसके मन मस्तिक ने चीख कर कहा क्या यह उसका दीपक है ?
उसका अपना दीपक!. दिल ने कहा नहीं.नहीं यह कैसे हो सकता है?.. दीपक तो लंदन चला गया था!.. उसका यहां होना नामुमकिन है।यह सोचते हुए वह जैसे ही वह उस अजनबी के सामने पहुंची उसकी बड़ी बड़ी नीली आंखें आश्चर्य से फैलती चली गई और वह लगभग चीख पड़ी दीपक तुम यहां। यहां कैसे?. तुम तो लंदन में थे ना!.
अचानक ही अपने सामने विशाखा को देखकर दीपक हड़बड़ा कर खड़ा हो जाता है और कहता है ।अरे विशाख तुम!.. तुम यहां तुम तो विशाखापट्टनम में थी ना ?..अभी यहां बनारस में! और इस रेस्टोरेंट में किसके साथ आई हो ?.. दीपक की हड़बड़ाहट देखकर विशाखा ने अपने पुराने चिर परिचित अंदाज में जोरदार ठहाका लगाया और बोली मैं,मैं तुमसे ही मिलने आई हूं। दीपक चिंता मत करो और इतने हड़बड़ा क्यों रहे हो?..मैं अपने प्यार की दुहाई देने भी नहीं आई कहते हुए विशाखा खिलखिलाकर कर हंस पड़ती है।
अपनी स्थिति का भान होते हैं दीपक शर्मिंदा होते हुए कहता है अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है ।
बैठो!... और कैसे आना हुआ?...
विशाखा अब तक सारी बिषय स्थिति समझ चुकी थी ।
उसने कनखियों से दीपक को देखा और बोली दीपक आज हम दोनों फिर एक दोराहे पर खड़े हैं!..
मेरा बेटा तुम्हारी बेटी से बेइंतहा मोहब्बत करता है।
और तुम्हारी बेटी मेरे बेटे से, लेकिन तुम्हारी बेटी को हम उतनी सुख सुविधाएं नहीं दे सकते जो कि तुम्हारे पास है।
अब सोचने की तुम्हारी बारी है कि तुम्हें आज भी , सुख सुविधाऐं और अपना वो ऐसो आराम प्यारा है या तुम्हें उसके लिए चाहिए मोहब्बत का एक छोटा सा आशियाना, हाँ अपने विचार मुझे जल्दी ही बता देना मैं अपने बेटे का जिंदगी बर्वाद नहीं कर सकती अगर आज भी तुम्हारे पास वही 25 साल पहले वाला जवाब हो तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।
और वह अपने गुलाबी चहरे पर उभर आई विषाद की रेखाओं के तीक्ष्ण बाणों का प्रहार करते हुए कहती है। तुम आज भी कहने के लिए स्वतंत्र हो दीपक ।
विशाखा ये दिल ही तो है "आज यहां लगा है" तो "कल कहीं और लग जाएगा"जीवन में प्यार से ज्यादा पैसे की जरूरत होती है। बेटी के लिए प्यार और पैसे में से आज फिर तुम्हें किसी एक को चुनना होगा !
कहते हुए विशाखा का शरीर एक पत्ते की तरह कांपने लगा पैसे के आगे अपने प्यार की पराजय को वह आज तक स्वीकार नहीं कर पाई थी दीपक के छोड़ कर जाने के वाद उसने शादी की ही कहाँ थी बस अनाथालय से एक बच्चा गोद ले लिया था जो आज उसकी मेहनत लगन और परवरिश के कारण DSP बन कर बनारस में अभी अभी पदस्थ हुआ था उसके जीवन भर की जमा पूंजी वही तो था और आज उसका वह कोई मोल लगाना नहीं चाहती थी।
विशाखा अपने रक्ताम्बरी चेहरे का आक्रोश दवा ना पाई जो असफल प्रेम की परिणीति के मिले-जुले आंसुओं में तब्दील हो कर उसके गालो पर फैल गया । कटघरे में खड़ा दीपक क्षमा याचना के स्वर में सिर्फ इतना ही कह सका विस "यह दिल है, यह दिल ही तो है"जो एक बार जहां लग जाता है फिर कहीं दूसरी जगह लगाना नामुमकिन ही नहीं असंभव हो जाता है कोई भी अपने पहले प्यार को नहीं भूल सकता। इसलिए आज मेरा निर्णय है कि मेरी बेटी सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे ही घर में बहू बनकर आएगी जो मैं ना पा सका मेरी बेटी को जरूर मिलेगा।खुशी और दुख के मिलेजुले भाव के साथ विशाखा अचानक फूट फूट कर रो पड़ी रोती विशाखा के हाथों को,अपने हाथों में लेकर दीपक इतना ही बोल सका विशाखा हम नदी के दो किनारे बन गए पर हमारे बच्चे हमारे बीच बहती धारा बनेंगे।
रेखा दुबे,
विदिशा, मध्यप्रदेश
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