उदित और अमन दोनों दोस्त बड़े ही दिल फ़ेंक हैं पर नेक हैं
और ये पाक-साफ दिल , कब कहां किस पर कैसे या किस लिए आ जाए दूर-दूर की तो छोड़ो आसपास भी कोई सोच नहीं सकता आज भी शहर के प्रसिद्ध महामाया मैया मंदिर में हमेशा की तरह शुक्रवार को पूजा करने दोनों ही गए थे।
दोनों के हाथों में फल फूल और दूध आदि सामान थे भीड़ अधिक थी दोनों भीड़ की रफ्तार में आगे पीछे हो कर रह गए तभी उदित ने देखा, अमन तो भीड़ में ना आगे है ना पीछे ।
पूजा तो उसने भी नहीं की !अरे यह गया कहां !! उसने कुछ देर तो देखा फिर जैसे तैसे पूजा करके भीड़ को चीरते बाहर आ गया और ये क्या अमन तो आराम से हाथों में केवल फूल लिए चबूतरे पर बैठा है ।
उससे पूछा , तू अंदर गया भी या नहीं और यह फूल .. बाकी सामान कहां है!?
उदित को लगा कहीं पूजा को छोड़ किसी आरती वंदना या पुष्पांजलि के चक्कर में तो नहीं रह गया ।
अरे यार तू जो सोच रहा है ऐसा कुछ भी नहीं है मेरी तो पूजा बाहर ही हो गई।
कैसे ?
देख उधर !
उदित ने देखा एक गंदी मैली भिखारिन बुढ़िया फल और दूध लिए धीरे-धीरे जा रही थी ।
अरे ! तूने मैया की पूजा का सामान इसे !?
अरे यार क्या करूं ! बेचारी हाथ फैला फैला कर मांग रही थी और तू तो जानता है मेरा तो दिल ही ऐसा है !! बस दे दिया।
दिल ही तो है मैया को छोड़ अम्मा पर आ गया ।
इधर ना सही उधर सही , बस दे दिया।
अमन की बात पर उदित को हंसी आ गई और दोनों घर की ओर चल दिए ।
संतोष शर्मा शान
हाथरस
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